Thursday 23 April 2020

कुछ तेरी कुछ मेरी बात करते है




 कुछ तेरी कुछ मेरी बात करते है



बीत जाये ये रात,ऐसी कोई बात करते है ,
चाँद के नीचे बैठे है,शायद इसलिए याद करते है ,
 फिर एक मुलाकात करते है ,
 इस दरमियान ,चलो थोड़ी, तुम्हारी-थोड़ी मेरी बात करते है ,

मिलते है भीड़ में फिर एक दफा ,
मुद्दतो बाद ,
में ढूंढूगा मुसाफिर बन तुम्हे ,
हज़ार चहेरो में तुझे अपनी मंज़िल बना ,
ऐसी कोई मुलकात फिर करते है,
एक दफा फिर थोड़ी मेरी  ,थोड़ी तेरी बात करते है,

ले लेते है फिर एक टैक्सी ,और चल देते है ,वही समुन्दर की और ,
तुम रास्ते देखना ,और में, बस तुम्हे ,
मुस्कुराते ,ऐसे जज़्बात हम फिर बुनते है ,
चलो ना , एक दफा फिर, थोड़ी मेरी-थोड़ी तेरी बात करते है ,

लेहरो के पास ,पत्थर पे बैठ के ,
हम हाथ पकड़ ,छूठ न जाये ,ऐसा एक साथ फिर बुनते है ,
करोड़ो वाली इस आबादी में जो मेने थामा  है साथ तुम्हारा,
उस चहेरे से एक बात कहु, तो बस ,
एक दफा, फिर मुलाकात करते है ,
 कुछ मेरी कुछ तेरी बात करते है ,

यादें बितायी नहीं कुछ ख़ास हमने ,
में जानता हु,पर उन सीढ़ियों के कदमो को,कौन समझाए,
जो इंतज़ार करते है ,वो अब भी बुलाते है हमे,
समुन्दर किनारे ,
पूछते है ,हाल ऐ दिल मेरा  ,
चलो चलते है न ,फिर बतयाने को,
बतायेगे, इन कुछ सालो की कहानी ,
वक़्त मिले तो चले आना में इंतज़ार करुगा वही ,
बस कहने को वो एक बात ,
एक दफा फिर मुलाकात करते है ,
कुछ तेरी कुछ मेरी बात करते  है ,


मुलाकातों की बात है तो,सोचता हु ,
कोई यादें ख़ास अब तुम्हे याद न होगी ,
तो फिर, वो ही घंटो फोन पे बात करते है ,
मैसेज का इंतज़ार तो रहेगा आज भी तुम्हारा ,
 करोगे जब कभी ,तो कहुगा , एक मुलाकात करते है ,
कहते है ,कुछ तेरी कुछ मेरी बात करते है ,


अब फिर कभी वक़्त मिले तो लौट आना ,
में इंतज़ार करुगा ,वही ,जहा सबसे पहेली मुलकात करते है ,
तुम फ़िक्र न करना में पहचान लूंगा तुम्हे ,
बस ,तुम वो चस्मा , आँखों में काजल ,और वो बचपने से
भरी हस्सी साथ ले आना ,
कहने को ,"निश "
की चल एक कदम फिर साथ चलते है ,
कुछ तेरी कुछ मेरी बात करते है।


निशित योगेंद्र लोढ़ा











Friday 3 April 2020

अज़ल ऐ शायरी

अज़ल ऐ शायरी

मांगा नही रब से,
इशारा बस तुम्ही को था,
नाम लिया नही कभी मेने,
पर पुकारा बस तुम्ही को था।

Monday 30 March 2020

लफ्ज़ -ऐ-निश १

लफ्ज़ -ऐ-निश १ 

मेरे अल्फ़ाज़  न निकल सके,
इतनी उनसे जज़्बातो के बाद ,
हम अजनबी ही रहे अब भी ,
इतनी मुलाकातों के बाद.

निशित  लोढ़ा 

Wednesday 11 March 2020

मुक़म्मल ऐ ज़िन्दगी


मुकम्मल इतनी भी कहा हुई ज़िन्दगी,
की दर्द अपना चंद पन्नो पे उतार दु,
अभी तो शुरुआत है ऐ-ज़िन्दगी,
चल कुछ पल तेरे और जी कर निकाल दु।।

निश