Tuesday 29 November 2016

दिन वही शाम है

दिन वही शाम है

वो लबों पे जैसे नाम सा,
वो आँखों में पैगाम है,
वो साँसों में धधकती ,
जैसे धुप हुई शाम है,
ये शाम कि ज़ुस्तज़ु,
ये रात का आगाम है,
ये झलकती आँखों के आँसू बस तेरे नाम है ,
बस तेरे नाम है,
मन में जज़्बात है,
कहने को कुछ बात है,
लबो पे नाम है तेरा,
तो कैसी ये सौगात है,
खुशनुमा रहना तुम युही,
ये सपनो की रात है,
कभी याद आऊँ में अगर ,
तो हर रात जैसे कायनात है,
चहेरे पे मुस्कान लेकर ,
चलना एक शाम रे,
हम तुम्हे देख मुस्कुरा दे अगर ,
तो बस वो हमारा दिन है और वही शाम है।
मिले अगर फिर हम कही ,
राहो को सलाम है,
बस हॅसकर गले से लगा लेना,
मेरा तो बस वही दिन है वही शाम है,
होता ना में शायर कभी,
ये दिल का शब्दों को जाम है,
ये कवी नही शायरो में शुमार,
ये तो मेहखाने में आम है,
इसे थी मोहबत की जुस्तजो,
पर दिल कहा इसके नाम है,
जीता बस यादों के सहारे ,
बस हमारा दिन वही, वही हमारी शाम है।
कवि निशित लोढ़ा

Thursday 22 September 2016

लबो पे मेरे एक नाम आगया

लबो पे मेरे एक नाम आगया

लबो पे मेरे नाम सा छा गया,
हुस्न की तारीफ क्या करू,
उनका चहेरा मेरी आँखों में समा गया,

मेरे दिन कि कहानी कहा से शुरू करू,
मेरा सवेरा उनकी याद बन आगया,
वक़्त न जाने कैसे कटता,
मेरा तो वक़्त उन्ही से शुरू और उन्ही पे ठहरा गया,

किस्से तो बहुत है ज़िन्दगी तेरे,
पर दिल तो बस उनकी बातों में आगया,
कैसे कहे दू कोई बात पुरानी,
मेरे तो हर शब्द में उनका नाम आगया,

कोशिश तो कि थी बहुत उन्हें भुलाने कि,
पर देखा तो दिल-दिमाग भी प्यार में उनके सब गवा गया,

बैठा कही में ,मंद-मंद मुस्कुरा रहा था,
बस फिर वही लबो पे मेरे उनका नाम आगया ।

निशित लोढ़ा

Monday 1 August 2016

ढूंढती निगाहे

हज़ारो चहेरो में कही एक चहेरा में ढूंढता,
में बन बंजारा क्यों न घुमता,

मुद्दत बाद वो याद आये मुझे,
तो आंसू इन नयन के कैसे कही में रोकता,

वो कहते थे मुझे तू अपनी मंज़िल तलाशना,
में उनकी कही बातें फिर कैसें न सुुनता,

आज याद करता हु में उन्हें उनकी बातों के संग,
वो कहे शब्द कैसे में भूलता,

आज दूर है वो मुझसे,में हु कही उनसे,
यादों के संग क्यों ये ख्वाब में बुनता,

आज एक राह चला हु, मुस्कुराता एक मंज़र पर,
चल फिर एक इंसान खुद में उनसा क्यों नही ढूंढता, न जाने क्यों नही ढूंढता।

कवी निशित लोढ़ा
शुभरात्री

Monday 27 June 2016

मेरी मोहब्त

ग़र दिल  तुम्हारा  इतनी  इनायत  नहीं  करता !
बे-ख़ौफ़  हो के  मैं भी  मौहब्बत  नहीं  करता !

इस दिल  ने तो  चाह है  तुम्हे टूट  के फिर भी ।
किस दिल से कहा तुमने मोहब्बत नहीं करता ।

ये ख़ास करम मुझपे किया होता न अए-दोस्त ।
दिल  टूटने  की  तुमसे  शिकायत  नहीं करता ।

गर  तुम  हसीं  न  होते  गर  मैं  जवाँ  न होता ।
ख्वाबों  मैं  ला के  तुमसे शरारत  नही  करता ।

इक़  प्यार  के  सिवाये  ज़माने  मैं अए - सनम ।
कुछ भी तो बिन तुम्हारी  इजाज़त नहीं करता ।

मैं  तो  हूँ  मेरे  दोस्त  मोहब्बत   का  बादशाह ।
नफ़रत  भरे  दिलों   पे   हुकूमत   नहीं  करता !

दिल को झुका  के यार के  सजदे  किये तो  हैं ।
किसने  कहा मैं  इबादत नहीं करता ।

Tuesday 21 June 2016

यादें बचपन की

उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..
अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते..

कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को..
अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने नही आते..

मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में..
अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते..

यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..
मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते..

माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..
क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते..

बहला रहा हूं बस..दिल के जज्बातों को..
मैं जानता हूं..फिर वापस..बीते हुए जमाने नही आते..

  

Saturday 18 June 2016

मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)

 मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)

आज फिर ऊँगली पकड़ मुझे एक राह चलना सीखा दो पापा ,
कुछ यादें फिर साथ अपने रहे, कुछ बातें ऐसी बना दो पापा ,

देख युही आँखो में मेरे ,पकड़ मुझे हस् के गले से लगा दो पापा ,
आज फिर मुझे हाथ पकड़ एक राह संघ चला दो पापा,

याद है मुझको आपका कंधे पे बिठा कर हर जगह घुमाना पापा ,
हातों में ले मुझे ,हातों में ही सुलाना पापा,

हर सुबह माथे पे चुम मुझे गोदी में उठाना पापा ,
अपने हातों से ही ज़िन्दगी भर खाना आप खिलाना पापा,

याद है मुझे आपका मेरे आंसू पोछ ,हसाना पापा ,
ख्वाइश मेरी सारी पूरी कर,ख्वाब अपने भुलाना पापा ,

मेरे हर सपने पूरे हो ,उन् सपनों को अपना बनाना पापा,
मेरी एक हस्सी देखकर ,आपका अपना गम भुलाना पापा ,

खुशनसीब में हु जहां कि आप मुझे मिले हो पापा  ,
पर वही मेरे जन्म पर खुश आपको हर-दम पाना पापा ,

घर में मुझे जहां सब प्यार है दिखाते हर वक़्त-हर पल  पापा ,
वही बिन दिखाए न कुछ बताये आपका वो प्यार जताना पापा ,

एक दिन जब आप मुझसे दूर गए ,लगा जैसे कि कही आप भूल गए पापा ,
महसूस किया जब आप बिना ,तो लगा दिल में कही अधूरापन है पापा,

फिर उस धुंद से दौड़ आपका मेरी ओर चले आना पापा,
देख आपको मेरी मुस्कान फिर चहेरे पे लौट आना पापा ,

फिर आपका गले मुझको लगाना पापा ,
और ऊँगली पकड़ मुझे फिर एक राह चलना सीखाना पापा,

आपका फिर मुझमे ज़िन्दगी भर बस जाना पापा ,
आप मुझमे अब हरदम-हरवक्त समाना पापा। 

कवि निशित योगेन्द्र लोढ़ा 
 


 







 
 


Tuesday 14 June 2016

शायराना १

शायराना १

न जाने क्यों दूर हो मुझसे ,
अक्सर राहों में दिख जाते हो,
पास नहीं होते हो मेरे ,
फिर क्यों सपनो में इतना आते हो।

निशित लोढ़ा 

दिल से दिल की बातें

दिल से दिल की बातें 

वक़्त निकालने के लिए कभी साथ ज़रूरी लगता था ,
आज अकेले यादों के सहारे भी जी लेता  है ,

 अब न तुम याद आते हो ,न तुम्हारी याद आती है,
ये बहती हवा दिल के पन्ने पलट कर न जाने कहा चली जाती है ,


मांगू जहां छाया तेरे जुल्फो कि उस तपती दुपहरी में, 
 चहेरा वही मेरा न जाने क्यों यु जला चली जाती है  ,

खुद कि वफ़ा ऐ दिल अब क्या में साबित करू ,
 मेरे दिल की धड़कन मुझे बेवफा कहे जाती है ,

मुलाकात तो आज भी होती है इन् राहों पर,
में नज़रे झुकता, तो वो मुस्कुरा देती है ,

अब लगता है कोई ख्वाइश उनकी बाकि रही होगी ,
वर्ना जब में पलट कर देखता , 
तो वो लबो पे क्यों मुस्कान ले छुपाती है।   

कवि निशित लोढ़ा 
  

Thursday 2 June 2016

न जाने वो कौन थे

न जाने वो कौन थे ,

मोहबत का तवजु दे गए मुझे ,
न जाने वो हमदर्द कौन थे,

लिखी न कभी दास्ताँ दिल की ,
 दिल जला वो दे गए ,
जाने वो खुदगर्ज़ कौन थे,

रास्ता ढूंढता मुसाफिर बन जहां  ,
वो राही बन बेसहारा कर गए,
जाने वो सरफिरे कौन थे ,

में चला जहां जो अपनी चाल कही ,
वे काफिला बन साथ चल गए ,
जाने वो हमदम कौन थे,

अब कही अपनी राह पा चूका,
मिले जो वो जन मौन है ,
सोचु में बस यही , न जाने वो कौन थे। 


कवि निशित लोढ़ा 
 


Friday 13 May 2016

ढूंढता बचपन

ढूंढता बचपन

ज़िन्दगी की दौड़ में ,तजुर्बा कच्चा ही रहे गया ,
हम सिख न पाए फरेब ,और ये दिल बच्चा ही रहे गया ,

बचपन में  जहां चाहा हस्ते और रो लेते थे ,
पर अब मुस्कान को तमीज और आंसू को तन्हाई चाइये ,

हम भी मुस्कुराते थे कभी बेहपरवाह अंदाज से ,
देखा है खुद को कुछ पुरानी तस्वीरो में ,

चलो कभी मुस्कुराने की वजह ढूंढते है ,
तुम हमे ढूंढो हम तुम्हे ढूंढते है।

कवि निशित लोढ़ा 

Thursday 12 May 2016

ज़िन्दगी के कुछ पन्ने

ज़िन्दगी के कुछ पन्ने

शब्दों से गहरा अपना एक जहान है ,
उड़ता फिसलता मेरा एक आसमां है,

अनगिनत ख्वाइशे और अरमान है दिल में ,
और उससे पूरा करने का जज़्बा है,

मुश्किलें है ,तकलीफे भी है इस दुनिया में ,
पर है तो सपनो का बलखता कारवाह है ,

मुसाफिर हु,अपनी तकदीर का ,
लिखता कहानी मन की और देखता खुला आसमान है,

यह शब्द ,यादें,बातें,ख्वाइशें,है मेरी,
जो पाया इसमें अपना और जो न पाया
उसमे जीता मेरा समा है।

कवि निशित लोढ़ा 

Friday 6 May 2016

पिता की कही बातें

 पिता की कही बातें 

माँ को गले लगाते हो, कुछ पल मुझे भी याद करो ,
पापा तुम बहुत याद आते हो,कुछ ऐसी भी बात करो ,
मन में जज़्बात है मेरे ,जो कहे न पाया, तो ऐसे न बात करो,
न सोचो के दिल में प्यार नहीं, बस मिल गले ,मेरी ज़िन्दगी खुशियों से आबाद करो ,

में हर वक़्त ज़िम्मेदारी से घिरा ताकि तुम सब कभी मायूस न हो ,
मैंने ज़िंदगी की हर तकलीफ को झेला ,ताकि तुम्हे कभी महसूस न हो ,
हर ख़ुशी तुम्हे दे सकू ,इस कोशिश में लगा रहा ,
मेरे बचपन में जो कमियाँ रही उनसे तुम्हे महफूज़ रखू ,

मन में मेरे भी लाख भाव छुपे है ,आँखों से न कर बया सकू ,
इस समाज का नियम है ,पिता हु तो सदा गम्भीर रहु ,
मेरी बातें रहे रूखी -सुखी ,लगे तुम्हे जैसे हिदायत हो,
पर मेरा दिल है माँ जैसा ,किन्तु में हु तो जैसे तस्वीर हु ,

भुला नहीं हु तुम बच्चो की वो तुतलाती बोली ,
पल-पल बढ़ते हर पल में,वो यादो की भर्ती झोली ,
कंधों पे वो तुम मेरे बेहट के घूमे जो हो हर गली ,
होली और दिवाली पर तुम बच्चों की देखी खुशियों की टोली ,

याद है मुझको मेरी डाँट से ,हर बात पे तुम्हारा सहम जाना ,
आंसू की बहती वो नईया सारी, भाव नयन के थम जाना ,
जब दौड़ माँ के करीब जो उनके जा उनसे लिपट जाना ,

तुम्हारी हर ख़ुशी में,मेरा शामिल न हो पाना ,
तुम हुए जब आँखों से ओझल ,तब हाथ हवा में देर तक युही फहराना ,
दूर गए हो तुम अब मुझसे ,तो मन इन् बातों से बहलता हु ,
तारीख देखता बस युही ,बस यादों से मन भर आता हु,

दिल से कहता, अब जब तुम घर आओगे, प्यार मेरा दिखलाऊँगा,
माँ की तरह तुझे अपनत्व से गले लगाऊंगा ,
आकर तुम बस मत चले जाना वो बातें दो चार हुई ,
क्या करू बेटा पिता का पद ही है कुछ ऐसा ये बात फिर खुद को समझाऊँगा।

कवि निशित लोढ़ा 

Tuesday 3 May 2016

दिल चाहने लगा

दिल चाहने लगा 

तेरे पे ऐतबार करने को दिल चाहने लगा,
फिर से एक ज़ख्म खाने को दिल चाहने लगा,

माना कि तू मेरी हातों कि लकीरों में नहीं ,
फिर भी तेरे नाम पे बदनाम होने को दिल चाहने लगा ,

ज़िन्दगी के रंग मुझे अब तुझी से लगने लगे है,
हर बार तुझी को आवाज़ देने को दिल चाहने लगा ,

महफ़िल में अपनी मोहबत का ऐतबार न कर बेहटे ,
कि खुद को तन्हाइयों में बंद करने को दिल चाहने लगा,

प्यार के नाम पर धोके ही मिलते है ज़िन्दगी में ,
मुझे फिर भी तुमसे मोहबत करने को दिल चाहने लगा. 


निशित लोढ़ा 

Monday 25 April 2016

जाने में कौन था

      जाने में कौन था

सवालो से घिरा ,खुद में उलझा ,
मंज़िल को ढूंढता, जाने में कौन था ,

मोहबत कर बेहटा ,प्यार में रहेता ,
सपनों में खोता उनके, जाने में कौन था ,

लिखता में रहता ,जो मन मेरा कहता ,
पन्ने पे थी कहानी मेरी , जाने में कौन था ,

जवाबो की तलाश थी,मंज़िल मेरे पास थी ,
बस अकेला राही था में, सोचता यही जाने में कौन था ,

वो पल भी हसीन थे ,जब सब मेरे करीब थे ,
हस्ता मुझमे उस वक़्त न जाने वो कौन था ,

इंतज़ार किया मैंने ,जीना भी सीखा यादों के सहारे ,
न जाने उस चहेरे के पीछे वो चहेरा कौन था। 

कवि निशित लोढ़ा  

 


Sunday 10 April 2016

ज़िन्दगी

      ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी तुझे जीने के लिए ये चुनाव क्यों ,
तरजीह क्यों हर पहल पे ,रास्तों में ये घुमाव क्यों ,

हर तरफ जहां सवाल है ,वहां तेरा भूचाल क्यों ,
ऐ ज़िन्दगी तुझसे आशा है ,तो मन में ये बवाल क्यों ,

क्यों मुश्किल है मेरा फैसला लेना ,जब जीने का जवाब तुम ,
धड़कन धड़कती है दिल कि,पर साँसों में हो जैसे ख्याल तुम,

ज़िन्दगी तुम हस्सी हो मुस्कराहट हो तुम जीने की चाहत हो ,
पर तुम ज़िंदा हो मुझमे जैसे खुदमे अफ़राद हो ,

जीने का नाम है ज़िन्दगी ,मुमकिन हर राह में फिराक है ज़िन्दगी ,
फिर क्यों है मुझमे जैसे कोई अफसाद है ज़िन्दगी ,

आशा की किरण दिखी जहां, वहां मेरी कहानी का जवाब है ज़िन्दगी ,
लिखे तकते मैंने हज़ार ,पर मुस्कराहट है जैसे जहान है ,ऐ ज़िन्दगी। 

कवी निशित लोढ़ा 




मोहबत ऐ गुनाह

मोहबत ऐ गुनाह

लाख तुम ने किये वादें ,लाख हमने ऐतबार किया ,
तेरी राहों में हर बार रुककर मैंने तेरा ही इंतज़ार किया ,
अब न मांगेंगे तुझसे ज़िन्दगी या रब ,
ये गुनाह किया हमने जो एक बार किया।


में हु

                 में हु   

मोहबत जब अपनी बया न कर सका ,
हस्ता क्यों न में रोता जार-जार हु,

पलकों से अश्क न रुके ,
देख आंसू भी बेक़रार हु ,

वो बुझती शमा भी है तो क्या ,
में जीता बेक़रार हु ,

दिल में है तो नाम बस उनका ,
में पीता  बेशुमार हु ,

मेरी मोहबत को न नापना ,
में उनकी यादों का शिकार हु,

मुस्कराहट है तो बस उनसे ,
में जीया बेक़रार हु,

आँचल संभालने रखना अपना ऐ हमनवा ,
में बढ़ता हर कदम जैसे रेहगुजार हु,

लिख लु में हर बात उनकी ,
में उनकी यादों में फरार हु,

बस अब जीना दो मुझे ,
में जो हु उन साँसों की गुहार हु।

कवी निशित लोढ़ा 

मोहबत के दो लफ्ज़

मोहबत के दो लफ्ज़

 मन में एक आरज़ू थी की वो मेरा दीदार करे ,
में देर से जाऊ तो वो मेरा इंतज़ार करे ,
में जुल्फ सवारू अपने हातों से ,
तो  मुस्कुराए और शर्मा मेरी मोहबत का इकरार करे


Saturday 2 April 2016

मोहबत्त का मौसम फिर आगया


मोहबत्त का मौसम फिर आगया 


 ज़बान पे न जाने क्यों उनका नाम आगया ,
बीतें पलों की कहानी के खुले जो पन्ने ,
तो आँखों के सामने फिर वोही एक सवाल आगया ,

क्यों आये वो फिर ज़िन्दगी में ये न पूछो, 
मेरे लिए तो जैसे ज़हेन में भूचाल आगया ,
मोहबत्त, इश्क़ जहां भूला चुके हम  ,
वही दूसरे सिरे पे उनके प्यार का पैगाम आगया,

लबो पे थे मेरे नाम हज़ार ,पर हर चहेरे में उनका चहेरा नज़र आगया ,
 कैसे भुलाऊ अब उन्हें ,
देखो मुझे नशे में कभी ,में उनके ही नाम का जाम लगा फिर आगया ,

गीले-शिकवे बहुत है मुझे उनसे ,
पर कहु क्या मेरा तो ये दिल नजाने कब और कैसे उनपे आगया ,
कोई सम्भाल सके मुझे तो सम्भालो,
देखो ये आशिक़ फिर आशिकी करने आगया ,

अब कैसे समझाये इस दिल को,
यह जैसे खुले आसमान में उड़ते ख्वाब बनाता चला गया ,
शायद अब ये फिर तैयार है ,चल मोहबत करते है ,
क्या पता शायद मौसम ऐ रूख उनका हमारी और आगया। 
  
कवि-निशित लोढ़ा 

Thursday 31 March 2016

दिल शायराना होगया

दिल शायराना होगया

मुझे मेरे सपनो में रहने दो,
मेरी हसरतो में जीने दो ,
मुझे मेरे होश में न लाना ,
चलो मुझे थोड़ा और पीने दो,

आशिक़ी का घुट लगा के बेहटा हु ,
मोहबतो का सुर बिठाए बेहटा  हु,
देखो अभी तो सिर्फ ताल जमे है,
साज़ और सरगम में आवाज़ लगाए बेहटा हु।


 निशित लोढ़ा 

ऐ साथी

ऐ साथी  

आसमान का सफर है ,
लम्बी ये डगर है,
चल कुछ कदम साथ चल लेते है कही ,

ज़िंदगी में मुश्किलें है ,
मुस्कराहट भी है हर घड़ी ,
फिर क्यों न बैठ साथ थोड़ा हस् ले कभी,

चाहत है कही, 
मोहबत भी है उनसे  ,
चल आशिक़ी कर लेते है अगर वक़्त मिले युही   ,

फिर साथ ज़िन्दगी का है ,
साँसे और धड़कन है ,
मिले खुलके तो चल जी लेते है फिर अभी .
चल जी लेते है युही।

निशित लोढ़ा 

Monday 28 March 2016

वक़्त कम होगया

  वक़्त कम होगया 

आज कल लिखने को शब्द कम मिलते है ,
शायद दिल का दर्द मेरा कम होगया ,
मिलने को लोग कहा मिलते है ,
शायद वक़्त मिलने का कम होगया ,
अक्सर पाया मैंने खुद को वही ,
जहां लेने को साँसे और जीने को वक़्त कम होगया।

निशित लोढ़ा 

Sunday 27 March 2016

शायरी

शायरी

मुश्किलों से अक्सर हम मिला करते है ,
कोशिश उनसे निकलने की हर वक़्त किया करते है ,
 देखा है ज़िन्दगी में ऐसा दौर भी ,
जिस मोड़ पे हम मर के जीते ,और जी के मरा करते है।

लाख कोशिश कर लो मुझे हराने की ,
में जीत के निकलुंगा मैंने ठानी है ,
कोशिश करुगा हर वक़्त में चाहे वक़्त ही न हो मेरा ,
साँसे लेता रहूगा शायद यही ज़िंदगानी है।

निशित लोढ़ा 

Saturday 26 March 2016

जाने कैसा राज़ है

जाने कैसा राज़ है

एक बात होटों पे है जो आई नहीं ,
बस आँखों से है झाकती ,
तुमसे कभी ,मुझसे कभी ,
कुछ लफ्ज़ है वो मांगती ,
जिनको पहेन के होटों तक आजाये वो, 
आवाज़ की बाहों में बाहें दाल इठलाये वो,
लेकिन जो ये एक बात है ,
एहसास ही एहसास है ,
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती ,
खुशबू जो की आवाज़ है,
जिसका पता तुमको भी है,
 जिसकी खबर मुझको भी है,
दुनिया से भी छुपता नहीं ,
ये जाने कैसा राज़ है। 

जावेद अख्तर 
 

Thursday 24 March 2016

में हु थोड़ा उनमे थोड़े मुझमें

में हु थोड़ा उनमे थोड़े मुझमें 

छूटे न छूटे ऐसा रिश्ता बन जाये उनसे ,
दुनिया छोड़ जाये पर वो न दूर जाये मुझसे ,

कहे दू उनसे वो क्या है मेरा लिए ,
या बन जाऊ अंजान हमेशा के लिए उनसे,

 संग चलू उनके हाथों में हाथ कही,
या चल दू मुसाफिर बन ,कि रहे न जाऊ खुदमे , 

लिखू कहानी बीतें पल की संग कही ,
या जी लू ज़िन्दगी थोड़ा उनमे थोड़ा मुझमे ,

कहा हु में अब समझ नहीं आता याद में उनके ,
बस लेता हु साँसे ,धड़कन में थोड़ा उनके थोड़ा मुझमे। 
 

Sunday 20 March 2016

मुझमे मेरी ज़िन्दगी

                   मुझमे मेरी ज़िन्दगी 
मन करता है ,
पानी बेह जाये मेरे बीती ज़िन्दगी के लिखे पन्नो पे ,
नयी दास्तान लिखना चाहुगा फिर वही ,
क्या करू ज़िन्दगी तुझे फिर लिखने का मन करता है,

सूना था की सागर के दो किनारे होते है,
कुछ लोग जीवन में बहुत प्यारे  होते है ,
 ज़र्रुरी नहीं कि हर कोई पास रहे आपके,
क्यूंकि ज़िन्दगी में यादों के भी सहारे होते है,

समझा में बस फिर इतना ही की ये ज़िन्दगी ,
मोहबत नहीं जो बिखर जाएगी ,
ज़िन्दगी वो जुल्फ नहीं जो सवर जाएगी ,
बस थामे रखो हाथ इसका ,
क्यूंकि यह ज़िन्दगी जो गुज़री फिर लौट के न आएगी,

निशित लोढ़ा

Saturday 19 March 2016

आपकी बहुत याद है आती

आपकी बहुत याद है आती

आपकी बहुत याद आती है ,
साथ आपका ,बातें आपकी,मुस्कान हो या चाहत आपकी,
सब दिल में है, कुछ कहती और चली जाती ,
शायद इसे आपकी बहुत याद है आती,

बोले अलफाज़ और बीतें हर साज़ मेरा पास है जैसे साथी ,
न जाने क्यों हर दम-हर वक़्त मुझसे बहुत कुछ ये बातें कहे जाती,
मन में है सवाल कही ,उसके जवाब ढूंढे कहा ऐ जनाब बन साथी,
कहु खुदसे बस यही कि दिल में आपकी बहुत याद है आती,

ढूंढा कहा नही आपको मैंने ,पाया खुद में ही ऐ साथी ,
जैसे जलती मेरे-आपके बीच कोई दीपक बन बाती ,
आस्मां में अँधेरा कहा तारों का है सहारा देख पंथी ,
आँखो में है राहें कही ,पर ढूंढो में रास्तें अनकहे पहुंचे आप तक ऐ हमराही,
देख ले खुद में मुझको कही ,
में तो कहता हु खुद से बस यही, की बस आपकी बहुत याद है आती,
आपकी बहुत याद है आती।


निशित लोढ़ा
KAVISHAYARI.BLOGSPOT.IN

Thursday 17 March 2016

कौन हो तुम

         कौन हो तुम

लफ्ज़ कम पद गए बया करने को ,
जब आँखो में उनकी याद आगई  ,
दिल रूठ गया खुदसे,जब यादों में वो बात आगई,
बस ज़िन्दगी से एक ख्वाइश सी होगयी,
की दिल को बस तू चाइये,
और बस देखते ही देखते फिर वो मेरा साथ आगई। 

वक़्त

                             वक़्त 

कोई मुझे वक़्त दे देता, तो उनसे थोड़ी बात कर लेता ,
अपने बीते हर पल को  उनके साथ कर देता,
बस याद कर लेता उन्हें में अपनी यादें बना कर,
फिर थोड़ा वक़्त मिल जाता तो शायद उनके साथ चल देता।

Saturday 12 March 2016

वो समुन्दर भी बहुत रोता है

      वो समुन्दर भी बहुत रोता है


समझ गया एक दिन समुन्दर,तू भी कितना रोता है,
खारा है तू खुद में कितना ,
शायद इंसान से ज्यादा तू दिल ही दिल रोता है,

पाया क्या तूने जो खोया होगा,
की तू खुद में इतना खोता है,
समझ गया एक दिन की समुन्दर तू भी बहुत रोता है,

मन में न दर्द रखता दिल में न द्वेश ,
क्यों हर मायूस-हारा इंसान तेरे पास किनारे होता है,
अकेला महसूस किया जब किसी ने,
तो मिटटी या पत्थर पर सोता है,
लेकिन समुन्दर वो अकेला कहा, वो तो तेरे पास होता है ,

जब किनारे ले मेहबूब कोई अपनी होता है,
हाथ में हाथ लिए साथ, कही कोई सपने जोता है,
ऐ समुन्दर तू भी देख उन्हें बहुत कही रोता है,

दिल पे न लेना कोई अपने ,बिन बोले भी कोई रोता है,
देख कभी समुन्दर की लेहरे समझ लेना ,की समुन्दर भी बहुत रोता है,
 वो समुन्दर भी बहुत रोता है । 




बेवफा दिल

              बेवफा दिल 

बेवफा ज़िन्दगी में किसी अजनबी से प्यार हो गया ,
मोहबत हुई उनसे इस कदर की ऐतबार हो गया ,
सुना था दुनिया में अक्सर की ये प्यार क्या है ,
किया जब दिल ने, मुझसे पूछो की ये बला क्या है,
मिले जब दिल कही उनसे तब लगा सदियों के फासले है ,
दिल के दिल से जुड़े कही तो कुछ फैसले है,
चाहा था क्या दिल ने और मिला क्या,
शायद उनके मेरे बीच यही सिलसिले है ,
यकीन था इस दिल में की हम इस जहान में मिलेंगे ,
मिला कुछ तो सही तो हम एक राह संग चलेंगे ,
जो चाहा  इस दिल ने वो फिर कहा मिला ,
बेवफा ही था यह दिल जो फिर गला ,
इस ज़िन्दगी में फिर दर्द के सेवा कहा कुछ मिला ,
बस फिर चला था ये दिल ढूंढा फिर भी कहा कोई उनसा मिला ,
अधूरा था रहे गया , शायद यही था उनके और मेरा प्यार में।

निशित लोढ़ा




Monday 7 March 2016

वो माँ है

          वो माँ है 
आँखों में छुपी हमारी हर ख़ुशी ,
हर मुस्कराहट का राज़ है तो वो माँ है,
गम हो की दुख़,दर्द ही क्यों न हो दिल मे ,
उस दर्द में छुपे हर सवाल का जवाब है तो वो माँ है,
दुखाये दिल जब ये दुनिया कही हर मुकाम पे,
संभाल मुझे समझाने वाली वो है तो वो अपनी माँ है,
आंसू आए जहाँ चहेरे पर जब कभी ,
हाथ आँचल संभाले आये वो साथ मेरी माँ है,
ये मुस्कान, ये हँसी, चहेरे पे जो हरदम दिखे,दुनिया की तब्दील मुश्किलों के बावजूद उस मुस्कराहट का राज़ है तो वो माँ है,
माँ शब्द है समुन्दर से गहरा ,
ममता का वो सागर है,जिसके बिना शायद ये कायनात अधूरा है,
कैसे लिख दे कोई कवी बन अपनी माँ की ममता की कहानी,
शायद इसलिए हर माँ की कविता का प्रेम लिखता कोई हम कवी तो सच कहता हु की लिखा हर शब्द अपनी माँ के लिए अधूरा है।
मेरी ये कविता हर माँ को समर्पित,🙏
अपनी माँ कविता लोढ़ा के जन्मदिन पर।
कवि-निशित लोढ़ा🙏

Thursday 3 March 2016

आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी कही

आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी कही 

सोचता हु कभी-कभी में, की ऐ आंसू ,
 तेरी भी तो रही होगी कोई कहानी कही ,

दुःख में सुख में आ जाता है तू हर घड़ी ,
फिर जर्रूर तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही ,

 ये मन उदास हुआ जब कभी ,
तो क्यों आ जाता है मुख पे तू आंसू वही, 
शायद तेरी भी रही होगी अधूरी कहानी कही  ,

लगता है मुझे कभी-कभी ,
की तुझे छोड़ न गया हो अकेला इस जहान में कोई कही, 
तभी तो रह गयी होगी तेरी वो कहानी अधूरी वही ,

फिर सोचता है ये मन जब कभी ,
कि ख़ुशी के पल में भी आँखो से है झलकता है तू हर कही,
शायद ज़िन्दगी में मुस्कान तेरे रही होगी हर सदी ,
फिर क्यों रही होगी वो कहानी अधूरी तेरी भी कही ,

आशा की ज़िन्दगी जीता है तू अनकही  ,
 आंसू तू गम-ख़ुशी के हर घूट पीता है जब कभी ,
तभी तो तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही,

अलाह,भगवन,ईसा मसीहा को याद किया भी होगा तूने जब कभी ,
देखा तुझे हर चहेरे पे मैंने अंतर मन से वही,
बस सोचा इस दिल में यही,
 की आंसू तेरी भी रही होगी कोई कहानी सही,
शायद होगी तेरी भी कोई कहानी कही.

निशित लोढ़ा 



Sunday 28 February 2016

मुझमे में हु कही...

मुझमे में हु कही... 

आईना में अक्सर देखा खुद को जब मैंने कही ,
चहेरे पे चहेरा हर दम दीखता है ,

वो मासूमियत सा खिलखिलाता बचपन,
 देखू कहा,अब तू बता, ऐ मन,ढूंढ़ता हरदम दीखता है ,

मंज़िल ऐ सफर ,न कोई फ़िक्र ,
वो पल-वो कल ,
वो साथ अपनों का, ढुंढू तो भी अब कहा मिलता है, 

वक़्त की कीमत का उस समय एहसास न था,
आज कोडी-कोडी कमाने के लिए कोई मुझमे हर दम मिलता है,

चहेरे पे ढुंढू कहा वो हस्सी अपने बचपन की  ,
अब तो मुस्कुराने में भी मन को सूनापन लगता है ,

जीने को ज़िन्दगी तो बहुत लम्बी दी, ऐ खुदा ,
पर सबसे बेहतर जीने में बचपन लगता है। 




one of my best creations
dedicated, 
Nishit Yogendra Lodha

Saturday 27 February 2016

याद आती है

                 याद आती है 

तन्हाई में जीते है हम, तो दिल में अब चेन कहा ,
आँखे खुल जाये कही तो सपनो से सजी वो नींद कहा ,

युही ज़ी जलाते है मेरा सुबह हवा के ठंडे  झोंके ,
अब खो गयी मोहबत तो गुनगुनाते वो गीत कहा ,

जब इश्क़ एक मुश्किल इम्तेहाँ लगती थी पहले ,
अब उस मोहबत के बिन जीए ये दिल कहा,

अब कहा वफ़ा करने वाले मिलते है इस सफर में ,
मिले कही वो अगर तोह उस हसीन सा कोई है कहा,

अब तो धड़कने से भी डरता है ये दिल,
इस दिल में उस दिलबर का घर है कहा ,

 दुनिया अब सुनसान है रेगिस्तान की तरह ,
पहले वाली यादों की अब वो हसीन महफ़िल कहा.

निशित लोढ़ा 

Thursday 25 February 2016

ये नज़ारे

ये नज़ारे
आसमान को ताकता ढूंढता में वो एक तारा,
न जाने कहा छुप बेहटा बादलो के बीच कही तो मुस्कुरा रहा है,
वो पंछी हर राह मुड़ता कही अपना रास्ता बना हवाओ के बीच चलता अपने घर उड़ता चला जा रहा है,
देखती नज़रे जहा दूर कही चलती दुनिया को,
अपनी मंज़िल की और बढ़ता जैसे कोई उन्हें जल्द अपने पास बुला रहा है,
बेहटा में कही गुनगुनाता देखता उन् नज़ारो को हलके हलके यादों के संग एक बात दिल में कही छुपाये ,
हाय मुस्कुरा रहा है,
देखो शायद मुस्कुरा रहा है।😊
कवि एव पत्रकार-
निशित लोढ़ा😊🙏

Wednesday 24 February 2016

वो यादें

                वो यादें 

उनसे बिछड़े मुझे एक ज़माना बीत गया,
याद में उनके रहते एक अफ़साना बीत गया,
किताबो के पन्नें पलट गए हज़ार ज़िन्दगी के ,
पर साथ छूटे उनका मेरा ऐसा जैसे संसार मेरा वीराना बीत गया,

लिखी कहानी जो उन् हज़ार पन्नो पे वो शायद जमाना बीत गया,
पिके बेहटा हु अपने आप में कही  .
याद में उनके रहता आज भी वो अफ़साना बीत गया ,
शायद ज़िन्दगी का एक पल और जैसा उनका दीवाना सा बीत गया।


निशित लोढ़ा 

Tuesday 9 February 2016

ऐ उम्र !

ऐ उम्र !
कुछ कहा मैंने,
पर शायद तूने सुना नहीँ..
तू छीन सकती है बचपन मेरा,
पर बचपना नहीं..!!
हर बात का कोई जवाब नही होता
हर इश्क का नाम खराब नही होता...
यु तो झूम लेते है नशेमें पीनेवाले
मगर हर नशे का नाम शराब नही होता...
खामोश चेहरे पर हजारों पहरे होते है
हंसती आखों में भी जख्म गहरे होते है
जिनसे अक्सर रुठ जाते है हम,
असल में उनसे ही रिश्ते गहरे होते है..
किसी ने खुदासे दुआ मांगी
दुआ में अपनी मौत मांगी,
खुदा ने कहा, मौत तो तुझे दे दु मगर,
उसे क्या कहु जिसने तेरी जिंदगी की दुआ मांगी...
हर इंन्सान का दिल बुरा नही होता
हर एक इन्सान बुरा नही होता
बुझ जाते है दीये कभी तेल की कमी से....
हर बार कुसुर हवा का नही होता !!!
- गुलजार

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा

  हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा 

Wednesday 27 January 2016

ऐ दिल

                      ऐ दिल

बहुत ज़ुल्म सहे लिए इस ज़िन्दगी ने ,
कुछ दर्द तू भी सहे लेना ऐ दिल,
थोड़ी ख़ुशी थोड़े गम के पल देख लिए ऐ ज़िन्दगी ,
उसका अंजाम तू भी पाले ऐ दिल,
सुना है बहुत मुश्किल से मिलती है एक हसीन ज़िंदगी खुदा की रेहमत से,
तो थोड़ी साँसे तूने ली है मुश्किलें,थोड़ी साँसे तू भी ले ऐ मेरे दिल. 

मेरी ज़िन्दगी

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...

क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है

पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन

क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने

न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.

एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..

वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..

पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....

बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

शौक तो माँ-बाप के पैसो से पूरे होते हैं,

अपने पैसो से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं..

जीवन की भाग-दौड़ में -

क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम

और

आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए,

रिश्तो को निभाते निभाते..

खुद को खो दिया हमने,

अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,

और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,

लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..

मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,

कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!

माँ बहुत झूठ बोलती है

...........माँ बहुत झूठ बोलती है............

सुबह जल्दी जगाने, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूज़न बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मन सागर मेरा हो जाए खाली, ऐंसी वो गागर,
जब भी पूछो, अपनी तबियत हरी बोलती है।
उसके "जाये " हैं,  हम भी रग रग जानते हैं।
दुनियादारी में नासमझ, वो भला कहाँ समझती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

" ��हर माँ को समर्पित�� .����������������������������

Tuesday 26 January 2016

गणतंत्र दिवस

��������26th jan 2016��������

मंदिर के भगवान भी पूजे हैं मैंने, हर सुबह मैंने ज्योत जलाई है,
पर सजदा करता हूँ आज उसका, राष्ट्र को समर्पित जो तरुणाई है !

मेरी पूजा की थाली तुम्हारे लिए है, आज वतन पर तुम फ़ना हो गए,
मेरी श्रद्धा के अश्रु तुम्हारे लिए हैं, मेरी नज़रों में तुम खुदा हो गए !

उस माँ के दुलारे तुम भी थे, बहना के प्यारे तुम भी थे,
किसी के सुहाग तुम भी थे, बच्चों के ख़्वाब तुम भी थे,

एक माँ को माँ का दान था ये, क्षत्रिय का बलिदान था ये,
जी सकें हम सब भारतवासी, इस वचन का सम्मान था ये,

इन शहादतों का मान रखो, खुद से पहले हिन्दुस्तान रखो,
थोड़ी गैरत रखो उन वीरों की, वतनपरस्ती के इन हीरों की,

नहीं कहता मैं भर्ती हो जाओ फ़ौज में, करो सीमा पर लड़ाई,
जहाँ भी हो जैसे भी हो, कुछ करो जिससे हो देश की भलाई,

कुछ बनाओ हिन्दुस्तान ऐसा, हर दिल में हिंदुस्तान हो,
फिर से बनें हम विश्व गुरु, दुनिया में हमारी पहचान हो,

माटी है ये बलिदान की, इसका न अब अपमान हो,
जागो, पुकार रहा है वतन, जागो अगर इंसान हो ।

    

Sunday 24 January 2016

क्यों रखे

                      क्यों रखे 

टूटे दिल को, सँभालने की आस क्यों रखे ,
कितना खोया ज़िंदगी में हिसाब क्यों रखे,
अगर बांटनी है तो खुशियाँ बांटो दोस्तों से,
अपने जवाब अपने हैं,सब को उदास क्यों रखे।

Saturday 23 January 2016

अपना इतिहास

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!
आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
– श्री गोपाल दास व्यास जी

एक हसीन

             एक हसीन 
जब भी की पलके बंद मैंने ,
न जाने क्यों तेरा ही ख़्वाब मिला  ,
खुली आँखो से दीदार किया तो धड़कते सवाल का जवाब मिला ,
जाने कौन होगा इस हसीन के दिल में ,
बस फिर वोही सवालो का सिलसिला मन में ,
और दिल में उनके लिए प्यार मिला। 

तलाशता एक जवाब

                            तलाशता एक जवाब 
सवाल बहुत है ज़िन्दगी में, पर जवाब मुझे मिलता क्यों नहीं ,
पूछा खुद से,के दिल तू जीता है ,तो तेरा मुझसे नाता क्यों नहीं ,
साँसे लेता है दिल जब तू ,तो फिर इसमें जीना की आशा क्यों नहीं,
मन में है सवाल कही पर किसी का जवाब आता क्यों नहीं ,
ज़ख़्म हुए हज़ार शरीर पे ,पर इस दिल का दर्द जाता क्यों नही,
लेकर बेहटा सौ दुख अपने, पर गम में साथ कोई आता क्यों नहीं,
जानता  हु ये दुनिया सुख में साथ देती है,
बस मुस्कुराते सवालो के जवाब ढूंढ़ता पर कोई मुझे कुछ समझाता क्यों नहीं. 

Monday 18 January 2016

हैरत में हूँ

                  हैरत में हूँ
मुद्दत के बाद इक इंसान मिला हैरत में हूँ ।।
इतना आदर औ सम्मान मिला हैरत में हूँ ।।
दिल के कमरे का ताला खोला जब भी मैंने।
कितना रद्दी का सामान मिला हैरत में हूँ ।।
ख्वाबों की गलियों में आज टहलने निकला तो ।
अश्क़ बहाता हिन्दुस्तान मिला हैरत में हूँ ।।
सच के बांट बराबर रखकर तौले थे रिश्ते ।
फिर भी जाने क्यू नुकसान मिला हैरत में हूँ ।।
जिसके चेहरे पर खुशियों का पौडर था जितना ।
अंदर से उतना बेजान मिला हैरत में हूँ ।।
दौलत की चाहत ने इतना अंधा कर डाला ।
सड़कों पर बिकता ईमान मिला हैरत में हूँ ।।
तेरे ख्यालों के आँगन में गज़लों की खातिर ।
"राही" रोज नया उन्वान मिला हैरत में हूँ ।।

मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,

      मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,
मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,
मोहब्ब्त न उनको हुई मुझसे चाहत न मुझे हुई उनसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल ,
आशिकी न उन्हें हुई मुझसे ,
इबादत न मुझे हुई उनसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल,
लिखता रहा प्यार में ख़त उनको,
जवाब न मिला कभी उनसे,साथ न जुड़ा उनका मुझसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल,
लोग मुझे युही उनके नाम पे बदनाम करते रहे हर पल,
मुस्कुराता रहा में हर लब और इतराती रही वो हर दम,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल, न जाने।।
कवी -निशित लोढ़ा

मन की बात

मन की बात
मन कुछ कहना चाहता था,
पर कहे न सका,
जाने क्या सहता वो हमसे कुछ कहता पर कहे न सका,
दिल में बात रख वो सहना चाहता न जाने क्या कहना चाहता था कहे न सका,
आँखों में आंसू दे आज चला गया वो जज़्बात दिल में छुपाये,
सोच में डाल हमे बस वो अब रहे न सका,
मन में एक बात थी जो कहेना चाहता था पर कहे न सका।
याद में
कवि- निशित योगेन्द्र लोढ़ा

Tuesday 5 January 2016

उनकी यादें

         उनकी यादें 

बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा  जाते
जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा
जाने क्या सोच कर हम  इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले
अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी
है मौजूद
चंद निशान हमारे

सैलाब

     सैलाब

तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,

जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

सैलाब आया है

        सैलाब आया है 


तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,
जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

वो नीला आसमान

     वो नीला आसमान 
वो नीला आसमान ,
कुछ तेरा , कुछ मेरा
बाँट लिया आपस में
हमने अपने हिस्से का आसमान
कई रंग के ख्वाब यहाँ …
जीने के हजारों मक़ाम…
तेरी जेब में दुनिया को खरीदने का सारा सामान
मैंने भी जोड़े चंद सिक्के ,
अपनाने कुछ ऐश ओ आराम ..
पर वो शक़्स रहता जो
खुले आसमान के तले
ना जुटा पाया कुछ सामान
ना पहचाने दुनिया उसे ,
ना अपनाये अपनों में कहाँ

छीन गयी जिसकी
एक बिघा ज़मीन
ढोये वो बोझ, गैरों का यहाँ …
वो राह् पर भूकाबैठा …
तू चटकारे लगाये यहाँ …
क्या खूब जिया तू इनसान
कैसा यह फ़ासला …
इनसान …तू
इनसान से जुदा यहाँ !
उस अनपढ़ , के हाथों
ना दी किसी ने एक
कलम और किताब
छीन लिया बचपन
थमा दी लाठी
दूर् कर
भेद कर
अलग कर
इनसान को ,
इनसान से यहाँ…
बस
बाँट लिया आपस में हमने
अपने अपने हिस्से का आसमान !

इश्क़ ऐ हमनवा

       इश्क़ ऐ हमनवा 

किस बात से हूँ में यूँ खफा
ख़ुद से नाराज ,आपने आप से ज़ुदा
नजर कहीं ,दिल कहीं ,
हाल ए बयान ना समझे कोई
वक्त का कतरा भी बह गया
उनकी आवाज़ की खनक
दिल में चुभ सी गयी
आज इन वादियों में
ढूँढे मेरा मन यही
मुझसे घड़ी भर मिल ले
ऐ मेरे हमनवा ,यूँ ही