Wednesday 27 January 2016

ऐ दिल

                      ऐ दिल

बहुत ज़ुल्म सहे लिए इस ज़िन्दगी ने ,
कुछ दर्द तू भी सहे लेना ऐ दिल,
थोड़ी ख़ुशी थोड़े गम के पल देख लिए ऐ ज़िन्दगी ,
उसका अंजाम तू भी पाले ऐ दिल,
सुना है बहुत मुश्किल से मिलती है एक हसीन ज़िंदगी खुदा की रेहमत से,
तो थोड़ी साँसे तूने ली है मुश्किलें,थोड़ी साँसे तू भी ले ऐ मेरे दिल. 

मेरी ज़िन्दगी

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...

क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ।।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है

पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है

जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन

क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने

न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.

एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली..

वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!

सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से..

पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!

सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब....

बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |

शौक तो माँ-बाप के पैसो से पूरे होते हैं,

अपने पैसो से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं..

जीवन की भाग-दौड़ में -

क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..

एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम

और

आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..

कितने दूर निकल गए,

रिश्तो को निभाते निभाते..

खुद को खो दिया हमने,

अपनों को पाते पाते..

लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है,

और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..

"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,

लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ..

मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,

कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ...!

माँ बहुत झूठ बोलती है

...........माँ बहुत झूठ बोलती है............

सुबह जल्दी जगाने, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूज़न बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में,
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

मन सागर मेरा हो जाए खाली, ऐंसी वो गागर,
जब भी पूछो, अपनी तबियत हरी बोलती है।
उसके "जाये " हैं,  हम भी रग रग जानते हैं।
दुनियादारी में नासमझ, वो भला कहाँ समझती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।

" ��हर माँ को समर्पित�� .����������������������������

Tuesday 26 January 2016

गणतंत्र दिवस

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मंदिर के भगवान भी पूजे हैं मैंने, हर सुबह मैंने ज्योत जलाई है,
पर सजदा करता हूँ आज उसका, राष्ट्र को समर्पित जो तरुणाई है !

मेरी पूजा की थाली तुम्हारे लिए है, आज वतन पर तुम फ़ना हो गए,
मेरी श्रद्धा के अश्रु तुम्हारे लिए हैं, मेरी नज़रों में तुम खुदा हो गए !

उस माँ के दुलारे तुम भी थे, बहना के प्यारे तुम भी थे,
किसी के सुहाग तुम भी थे, बच्चों के ख़्वाब तुम भी थे,

एक माँ को माँ का दान था ये, क्षत्रिय का बलिदान था ये,
जी सकें हम सब भारतवासी, इस वचन का सम्मान था ये,

इन शहादतों का मान रखो, खुद से पहले हिन्दुस्तान रखो,
थोड़ी गैरत रखो उन वीरों की, वतनपरस्ती के इन हीरों की,

नहीं कहता मैं भर्ती हो जाओ फ़ौज में, करो सीमा पर लड़ाई,
जहाँ भी हो जैसे भी हो, कुछ करो जिससे हो देश की भलाई,

कुछ बनाओ हिन्दुस्तान ऐसा, हर दिल में हिंदुस्तान हो,
फिर से बनें हम विश्व गुरु, दुनिया में हमारी पहचान हो,

माटी है ये बलिदान की, इसका न अब अपमान हो,
जागो, पुकार रहा है वतन, जागो अगर इंसान हो ।

    

Sunday 24 January 2016

क्यों रखे

                      क्यों रखे 

टूटे दिल को, सँभालने की आस क्यों रखे ,
कितना खोया ज़िंदगी में हिसाब क्यों रखे,
अगर बांटनी है तो खुशियाँ बांटो दोस्तों से,
अपने जवाब अपने हैं,सब को उदास क्यों रखे।

Saturday 23 January 2016

अपना इतिहास

वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!
आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”

सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
– श्री गोपाल दास व्यास जी

एक हसीन

             एक हसीन 
जब भी की पलके बंद मैंने ,
न जाने क्यों तेरा ही ख़्वाब मिला  ,
खुली आँखो से दीदार किया तो धड़कते सवाल का जवाब मिला ,
जाने कौन होगा इस हसीन के दिल में ,
बस फिर वोही सवालो का सिलसिला मन में ,
और दिल में उनके लिए प्यार मिला। 

तलाशता एक जवाब

                            तलाशता एक जवाब 
सवाल बहुत है ज़िन्दगी में, पर जवाब मुझे मिलता क्यों नहीं ,
पूछा खुद से,के दिल तू जीता है ,तो तेरा मुझसे नाता क्यों नहीं ,
साँसे लेता है दिल जब तू ,तो फिर इसमें जीना की आशा क्यों नहीं,
मन में है सवाल कही पर किसी का जवाब आता क्यों नहीं ,
ज़ख़्म हुए हज़ार शरीर पे ,पर इस दिल का दर्द जाता क्यों नही,
लेकर बेहटा सौ दुख अपने, पर गम में साथ कोई आता क्यों नहीं,
जानता  हु ये दुनिया सुख में साथ देती है,
बस मुस्कुराते सवालो के जवाब ढूंढ़ता पर कोई मुझे कुछ समझाता क्यों नहीं. 

Monday 18 January 2016

हैरत में हूँ

                  हैरत में हूँ
मुद्दत के बाद इक इंसान मिला हैरत में हूँ ।।
इतना आदर औ सम्मान मिला हैरत में हूँ ।।
दिल के कमरे का ताला खोला जब भी मैंने।
कितना रद्दी का सामान मिला हैरत में हूँ ।।
ख्वाबों की गलियों में आज टहलने निकला तो ।
अश्क़ बहाता हिन्दुस्तान मिला हैरत में हूँ ।।
सच के बांट बराबर रखकर तौले थे रिश्ते ।
फिर भी जाने क्यू नुकसान मिला हैरत में हूँ ।।
जिसके चेहरे पर खुशियों का पौडर था जितना ।
अंदर से उतना बेजान मिला हैरत में हूँ ।।
दौलत की चाहत ने इतना अंधा कर डाला ।
सड़कों पर बिकता ईमान मिला हैरत में हूँ ।।
तेरे ख्यालों के आँगन में गज़लों की खातिर ।
"राही" रोज नया उन्वान मिला हैरत में हूँ ।।

मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,

      मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,
मुस्कुराये हुए मुझे मुद्दत बीत गयी,
मोहब्ब्त न उनको हुई मुझसे चाहत न मुझे हुई उनसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल ,
आशिकी न उन्हें हुई मुझसे ,
इबादत न मुझे हुई उनसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल,
लिखता रहा प्यार में ख़त उनको,
जवाब न मिला कभी उनसे,साथ न जुड़ा उनका मुझसे,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल,
लोग मुझे युही उनके नाम पे बदनाम करते रहे हर पल,
मुस्कुराता रहा में हर लब और इतराती रही वो हर दम,
न जाने कैसी कशमकश में था ये दिल, न जाने।।
कवी -निशित लोढ़ा

मन की बात

मन की बात
मन कुछ कहना चाहता था,
पर कहे न सका,
जाने क्या सहता वो हमसे कुछ कहता पर कहे न सका,
दिल में बात रख वो सहना चाहता न जाने क्या कहना चाहता था कहे न सका,
आँखों में आंसू दे आज चला गया वो जज़्बात दिल में छुपाये,
सोच में डाल हमे बस वो अब रहे न सका,
मन में एक बात थी जो कहेना चाहता था पर कहे न सका।
याद में
कवि- निशित योगेन्द्र लोढ़ा

Tuesday 5 January 2016

उनकी यादें

         उनकी यादें 

बेवजह ही धड़कते है अरमान
बेवजह ही हम मुस्कुरा  जाते
जब भी आता है होंठों पर नाम तेरा
जाने क्या सोच कर हम  इतराते
तुम इस बात से अनजान
कोसों दूर् …
उस धुंद की चादर तले
अपने चाय के प्याले को निहारते
जिसके किनारे पर आज भी
है मौजूद
चंद निशान हमारे

सैलाब

     सैलाब

तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,

जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

सैलाब आया है

        सैलाब आया है 


तड़पता है दिल ,ऐ साथी ,
जो तीर तीखे नुकीले निकले तेरी  ज़ुबान से
दो प्यार के बोल , पे तेरे
लूटा दिया हमने अपना जहान यह
फिर कब समझोगे, ऐ हमसफर
मेरी मंद मुस्कुराहट को
छिपा जाती है जो,
आँसुओं के सैलाब को

वो नीला आसमान

     वो नीला आसमान 
वो नीला आसमान ,
कुछ तेरा , कुछ मेरा
बाँट लिया आपस में
हमने अपने हिस्से का आसमान
कई रंग के ख्वाब यहाँ …
जीने के हजारों मक़ाम…
तेरी जेब में दुनिया को खरीदने का सारा सामान
मैंने भी जोड़े चंद सिक्के ,
अपनाने कुछ ऐश ओ आराम ..
पर वो शक़्स रहता जो
खुले आसमान के तले
ना जुटा पाया कुछ सामान
ना पहचाने दुनिया उसे ,
ना अपनाये अपनों में कहाँ

छीन गयी जिसकी
एक बिघा ज़मीन
ढोये वो बोझ, गैरों का यहाँ …
वो राह् पर भूकाबैठा …
तू चटकारे लगाये यहाँ …
क्या खूब जिया तू इनसान
कैसा यह फ़ासला …
इनसान …तू
इनसान से जुदा यहाँ !
उस अनपढ़ , के हाथों
ना दी किसी ने एक
कलम और किताब
छीन लिया बचपन
थमा दी लाठी
दूर् कर
भेद कर
अलग कर
इनसान को ,
इनसान से यहाँ…
बस
बाँट लिया आपस में हमने
अपने अपने हिस्से का आसमान !

इश्क़ ऐ हमनवा

       इश्क़ ऐ हमनवा 

किस बात से हूँ में यूँ खफा
ख़ुद से नाराज ,आपने आप से ज़ुदा
नजर कहीं ,दिल कहीं ,
हाल ए बयान ना समझे कोई
वक्त का कतरा भी बह गया
उनकी आवाज़ की खनक
दिल में चुभ सी गयी
आज इन वादियों में
ढूँढे मेरा मन यही
मुझसे घड़ी भर मिल ले
ऐ मेरे हमनवा ,यूँ ही

भगवन का तोफा

                     भगवन का तोफा 

अगर कोई पूछे कि जिंदगी में क्या खोया और क्या पाया,
 तो बेशक कहना,
 जो कुछ खोया वो मेरी नादानी थी,
 और जो भी पाया वो प्रभु की मेहरवानी थी,
 खूबसूरत रिश्ता है मेरे और भगवान के बीच में,
 ज्यादा में मांगता नहीं और कम वो देता नहीं  ।।

Monday 4 January 2016

याँदें

                                  याँदें 

यादों के सहारे ज़िन्दगी काटना अब बहुत मुश्किल लगता है,
पीते  हुआ मुझे गम भुलाना न जाने बड़ा मुश्किल लगता है  ,
वाकिफ है सभी मेह्खाने मेरी मौजूदगी से,
पर अब उनकी याद भूलना ,और उनका मेरी ज़िन्दगी में आना शायद मुश्किल लगता है.
                                       
                                                                           IN MEMORIES OF LOVE...

शब्द ज़िन्दगी के

         शब्द ज़िन्दगी के 

दिल की नफरत को मिटाना सीखो ,
रोते हुए को हसना सीखो,
बहुत अनमोल है ये ज़िन्दगी,
बस मुस्कुराते हुआ ज़िन्दगी बिताना  सीखो.

मेरे पिता

                                       मेरे  पिता 

हँसते हुए जो अपने दुःख छुपाता है ,वो पिता  है,
अपने बच्चो की एक मुस्कराहट के लिए हर दम मुस्कुराता है ,वह पिता है,
बच्चो की एक ख्वाइश को पूरी करने के लिए ,दिन-रात मेहनत करता है,वह पिता है,
सर पे जब माँ का हाथ अच्छा लगता है, तोह कंधे पे भी हाथ पिता का है,
 खुद को जब अकेला महसूस किया करता था उस अकेलापन में साथ पिता का है ,
आज इस  दुनिया से वाकिफ हुआ तोह वो ज़रया पिता है,
अपने हातों में लेकर घुमा जो हर गली वो साथ पिता का है,
आज लिखते हुए हाथ रूक गए और आँखे नम है,तोह बस वो याद पिता  है.

                                             dedicated too all father
                                                      in memories
                                       NISHIT YOGENDRA LODHA


Sunday 3 January 2016

मेरी ज़िन्दगी

                  मेरी ज़िन्दगी 

अपने शब्दो में अपनी कहानी छुपा लगा,
ढूंढ सके न कोई ऐसे शब्दो में उलझा लगा,
लिखता रहुगा जब-जब मन करेगा,
और बस अपनी यादों के संग ज़िन्दगी बीता लगा.

                                         

मेरी ज़िन्दगी

              मेरी ज़िन्दगी 

उम्र का तजुर्बा बहुत कुछ सिखाता है ,
हर कदम सोच कर चले ये बात समझाता है,
कुछ लोगो के नग़मे आज भी याद है ,तो कुछ लोगो की बातें ,
बस  उन यादों को सोच इंसान आज भी ज़िन्दगी बिताता है. 

बहुत याद आते हो

                              बहुत याद आते हो 

बहुत याद आते हो ,
भीड़ में आज भी जब दुनिया साथ होती,और खुद को अकेला महसूस करता हु,
तब आप बहुत याद आते हो ,
दिल में दर्द होता है,और खयालो में खोया होता हु,
 तब आप बहुत याद आते हो,
कैसे बहाओ आंसू आपने  कभी सिखाया ही नही मुझे ,
बस भीनी मुस्कान लिए फिरता हु ढूंढ़ता खुद को कही,
 तब आप बहुत याद आते हो.. 

Saturday 2 January 2016

मिली मुस्कान

                                 मिली मुस्कान 
हलकी रेशम चाँद की चांदनी में तारों की चमक' फिर आगयी,
आसमान की इन हवाओ में बहती ये रात फिर कहती हमसे कुछ न जाने फिर आगयी ,
बेहटे है हम युही रात के अँधेरे में महफ़िल सजाये उनकी याद में ,
पर चहेरा पे हस्सी और होटों पे वही मुस्कान लगता है उनसे मिली और फिर आगयी।

मुस्कान

                        मुस्कान 
हर ख़ुशी में छुपी एक नयी बात आती  है ,
हर रात किसी की बहुत याद आती है,
बस उस मुस्कराहट का मुझसे नाम न पूछना ,
क्यूंकि उनकी याद में ही मुस्कान आती  है. 

मेरी कलम


                         मेरी कलम 

में हाथ में कलम  उठाये बेहटा हु,
कि गलतियां मैंने जहा , उस बात पे सर जुखाये बेहटा हु,
ढूंढ़ता जहा सच हर कदम पे ,वही  झूट सुलगाएँ सेहता  हु,
पाया दर्द जहा मैंने वहाँ आंसू बहाये बेहटा हु ,
लिखता हु जख्मी कलम से ,पर अपनी सचाई कहता हु,
में न लेखक हु,न कवि,न तजुर्बे के बड़ा,
बस एक इंसान की हैसियत से ,
 में बस हाथ में कलम उठाये बेहटा हु.

एक पत्रकार

                               एक  पत्रकार 
लिख दिया सच मैंने जान अथेली पर रख ,
क्या गुनाह किया मैंने ऐ खुदा  तू बता ,
कहते है दुनिया सच की बुनियाद पे टिक्की है ,
तो क्या गलत किया लिख सच मैंने ऐ-इंसान तू बता ,
आज हर कोई झूठ का सहारा, पैसो का दम,बारूद की ताकत जेब में लिए फिरता है,
मैंने सचाई  की कलम रख ली तोह क्या गुनाह किया मैंने ऐ ज़मीर अब तू बता,
आज बिना डरे मौत का कफ़न सर पे बांधे पत्रकार सचाई देख- व -लिखता है ,
तो क्यों उसे डराते व मारते  है,ऐ समाज ये अब तू बता. 

ऐ ज़िन्दगी


                     ऐ ज़िन्दगी 

 सूरज को उगते चाँद को ढलते देखा है,
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को चलते देखा है ,
हस्ते-मुस्कुराते ,थोड़ा रोते फिर गुनगुनाते ,
मैंने लोगो को देखा है,
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को देखा है ,
दर्द से करहाते , मौत से झूझते,
दिल की आखरी धड़कन लेता देखा है ,
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को देखा है.

ऐ ज़िन्दगी ,तू मुझे इतना  न चाहना की तुझसे मोहबत होजाये ,
मौत तू मुझे न अपनाना की ज़िन्दगी अपनी तेरी अमानत हो जाये ,
ऐ खुदा  ,ज़िन्दगी तेरी, हक़ है तेरा ,
पर मुझ पे इतना  हक़ न जमाना की माँ के सामने तेरी ज़मानत न हो पाये। 

                                                           कवि-निशित लोढ़ा 
 

हमारे शिक्षक

                 हमारे  शिक्षक 

अँधेरे में जो दीप जलाता है, हमारी ज़िन्दगी में, 
उन्हें  शिक्षक कहते है,
भटकते राहों में जो हमे समझाता है हरदम,
उन्हें शिक्षक कहते  है,
हर गलती की माफ़ी मिल जाये जहा परेशान करने के बाद भी,
उन्हें हम शिक्षक कहते है,
फिर मंज़िल मिल जाये ज़िन्दगी में,
 और याद आये जो हरदम उन्हें हम बच्चे शिक्षक कहते है. 

यादें


                                यादें 
यादों के सहारे ज़िन्दगी काटना अब मुश्किल लगता है,
पीते हुए मुझे गम भूलना न जाने बड़ा मुश्किल लगता है,
वाकिफ है सभी महखाने मेरी मौजूदगी से,
पर अब उनकी याद भूलना और उनका सपनो में आना शायद अब  मुश्किल लगता है. 

मुक्काम

mukaam

Kisi kavi ne bahut hi khoobsurat likha hai...😊🙏
Zindagi me apna ek mukaam hona chaiye...
Jeeya iss kadar ki apna naam hona chaiye...
Har taraf har gali me uljhane intezar kar khadi hai...
Par usse samaj kr ladane ka khumaar hona chaiye...
Manzil ki kashti banayi nhi terti pani me .
Usse har safar lejaya jata hai toofani me..
Mushkile ati hai samne ladee toh guzar jati hai ar na ladee toh le guzarti hai...
Apni zindagi se bhi khoob seekh raha hu...
Mukaam ki talash me fir raha hu...
Manzil toh khade apna intezar kar rahi hai...
Me khada har manzar talashte hua mil raha hu...
Hawa k jhoke chu kar nikal jate hai...
Kitabo k pane sisakar badal jate hai...
Umar haste hua kat jati hai..
Ar khushiya dhundo toh aajevan varna maut tak nahi ati hai...
Sapne dekho din raat par unhe poora karne ka hausla rakhna...
Taklif mango khuda se harbaar par usse ubharne ka jazbaa rakhna...
Dekhna fir vo waqt bhi ayega,
pyasee ke pas chal samandar bhi ayega...
Vo bhi ky manzar hoga pane ka..
Manzil bhi milegi ar usse milne ka maza bhi ayega...

लाचारी


लाचारी

पुछ बेहटा एक दिन इस दिल से,

की देश की इस लाचारी को क्या नाम दू।

देखा जब कोई भूख़ से बिलकता है,कोई काम को तरसता है,कोई जीते जी 
मरता है,कोई मरने को तरसता है,

ऐसी हालत को देख,ऐ दिल तू बता कैसे मन को लग़ाम दू,

देश की इस लाचारी को क्या नाम दूँ।

भर बेहटा ज़ेब अपनी सब नेता दलाल बन कर,

फिर इस बात पे इन्हें क्या इनाम दू,

कोशिश करता है ,ये मन मदद करने को,पर दिन की रात हो जाये औऱ 
असफलता हात में,तो खुद को कैसे आराम दूँ,

ऐ दिल तू बता इस लाचारी को क्या नाम दूँ|

मदद चाइये इन्हें ,आह भरते है ये,विनती करू या दाम दू|

देश की इस लचारी को अब में क्या नाम दू |

कोशिश आपसे चाइये ,साथ आपका हो,तो अपनों से एक बात कहु की 
मिलकर बदले कुछ हालात अपने,

फिर कौन कहे देश की इस लाचारी को क्या नाम दू ।

मंज़िल

मंज़िल

मुस्कुराते हुए तुम चलते चलो,

गुनगुनाते तुम बढ़ते चलो,

मंज़िल तुम्हारा इंतज़ार कर रही है हर मोड़ पर,


तुम बस कदम संभाले चलते चलो,

रास्ता मुश्किल जितना होगा, उतना सुन्दर परिणाम मिलेगा,

ये बात जाने तुम बढ़ते चलो।

बहुत मिलेँगे मंज़िल ऐ मुसाफिर तुम्हे ,

तुम बस देख उन्हें अपने कदम बढ़ाते चलो ,

सुन्ना है रास्ते भी इंतज़ार करते है,

बंजारों का, बस तुम खिल-खिलाते हुए हाथ बढ़ाते चलते चलो।

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी हँस कर बीताना सीखो,

बचपन खुद का बनाना सीखो,

दुनिया खेल लगेगी उस दिन,


बस जब आप मुस्कुराना सीखो।



ज़िन्दगी ढूँढने निकला एक दिन,

मोहब्त मिल गयी,मुस्कराहट मिल गयी,अपने मिल गए,बस फिर क्या 

वही अपनी एक खूबसूरत सी ज़िन्दगी मिल गयी।

निशित लोढ़ा