ऐ ज़िन्दगी
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को चलते देखा है ,
हस्ते-मुस्कुराते ,थोड़ा रोते फिर गुनगुनाते ,
मैंने लोगो को देखा है,
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को देखा है ,
दर्द से करहाते , मौत से झूझते,
दिल की आखरी धड़कन लेता देखा है ,
मैंने ज़िन्दगी के कुछ पल को देखा है.
ऐ ज़िन्दगी ,तू मुझे इतना न चाहना की तुझसे मोहबत होजाये ,
मौत तू मुझे न अपनाना की ज़िन्दगी अपनी तेरी अमानत हो जाये ,
ऐ खुदा ,ज़िन्दगी तेरी, हक़ है तेरा ,
पर मुझ पे इतना हक़ न जमाना की माँ के सामने तेरी ज़मानत न हो पाये।
कवि-निशित लोढ़ा
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