मोहबत्त का मौसम फिर आगया
बीतें पलों की कहानी के खुले जो पन्ने ,
तो आँखों के सामने फिर वोही एक सवाल आगया ,
क्यों आये वो फिर ज़िन्दगी में ये न पूछो,
मेरे लिए तो जैसे ज़हेन में भूचाल आगया ,
मोहबत्त, इश्क़ जहां भूला चुके हम ,
वही दूसरे सिरे पे उनके प्यार का पैगाम आगया,
लबो पे थे मेरे नाम हज़ार ,पर हर चहेरे में उनका चहेरा नज़र आगया ,
कैसे भुलाऊ अब उन्हें ,
देखो मुझे नशे में कभी ,में उनके ही नाम का जाम लगा फिर आगया ,
गीले-शिकवे बहुत है मुझे उनसे ,
पर कहु क्या मेरा तो ये दिल नजाने कब और कैसे उनपे आगया ,
कोई सम्भाल सके मुझे तो सम्भालो,
देखो ये आशिक़ फिर आशिकी करने आगया ,
अब कैसे समझाये इस दिल को,
यह जैसे खुले आसमान में उड़ते ख्वाब बनाता चला गया ,
शायद अब ये फिर तैयार है ,चल मोहबत करते है ,
क्या पता शायद मौसम ऐ रूख उनका हमारी और आगया।
कवि-निशित लोढ़ा
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