ढूंढता बचपन
ज़िन्दगी की दौड़ में ,तजुर्बा कच्चा ही रहे गया ,
हम सिख न पाए फरेब ,और ये दिल बच्चा ही रहे गया ,
बचपन में जहां चाहा हस्ते और रो लेते थे ,
पर अब मुस्कान को तमीज और आंसू को तन्हाई चाइये ,
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेहपरवाह अंदाज से ,
देखा है खुद को कुछ पुरानी तस्वीरो में ,
चलो कभी मुस्कुराने की वजह ढूंढते है ,
तुम हमे ढूंढो हम तुम्हे ढूंढते है।
कवि निशित लोढ़ा
ज़िन्दगी की दौड़ में ,तजुर्बा कच्चा ही रहे गया ,
हम सिख न पाए फरेब ,और ये दिल बच्चा ही रहे गया ,
बचपन में जहां चाहा हस्ते और रो लेते थे ,
पर अब मुस्कान को तमीज और आंसू को तन्हाई चाइये ,
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेहपरवाह अंदाज से ,
देखा है खुद को कुछ पुरानी तस्वीरो में ,
चलो कभी मुस्कुराने की वजह ढूंढते है ,
तुम हमे ढूंढो हम तुम्हे ढूंढते है।
कवि निशित लोढ़ा