Tuesday 3 May 2016

दिल चाहने लगा

दिल चाहने लगा 

तेरे पे ऐतबार करने को दिल चाहने लगा,
फिर से एक ज़ख्म खाने को दिल चाहने लगा,

माना कि तू मेरी हातों कि लकीरों में नहीं ,
फिर भी तेरे नाम पे बदनाम होने को दिल चाहने लगा ,

ज़िन्दगी के रंग मुझे अब तुझी से लगने लगे है,
हर बार तुझी को आवाज़ देने को दिल चाहने लगा ,

महफ़िल में अपनी मोहबत का ऐतबार न कर बेहटे ,
कि खुद को तन्हाइयों में बंद करने को दिल चाहने लगा,

प्यार के नाम पर धोके ही मिलते है ज़िन्दगी में ,
मुझे फिर भी तुमसे मोहबत करने को दिल चाहने लगा. 


निशित लोढ़ा 

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