Monday 27 June 2016

मेरी मोहब्त

ग़र दिल  तुम्हारा  इतनी  इनायत  नहीं  करता !
बे-ख़ौफ़  हो के  मैं भी  मौहब्बत  नहीं  करता !

इस दिल  ने तो  चाह है  तुम्हे टूट  के फिर भी ।
किस दिल से कहा तुमने मोहब्बत नहीं करता ।

ये ख़ास करम मुझपे किया होता न अए-दोस्त ।
दिल  टूटने  की  तुमसे  शिकायत  नहीं करता ।

गर  तुम  हसीं  न  होते  गर  मैं  जवाँ  न होता ।
ख्वाबों  मैं  ला के  तुमसे शरारत  नही  करता ।

इक़  प्यार  के  सिवाये  ज़माने  मैं अए - सनम ।
कुछ भी तो बिन तुम्हारी  इजाज़त नहीं करता ।

मैं  तो  हूँ  मेरे  दोस्त  मोहब्बत   का  बादशाह ।
नफ़रत  भरे  दिलों   पे   हुकूमत   नहीं  करता !

दिल को झुका  के यार के  सजदे  किये तो  हैं ।
किसने  कहा मैं  इबादत नहीं करता ।

Tuesday 21 June 2016

यादें बचपन की

उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..
अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते..

कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को..
अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने नही आते..

मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में..
अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते..

यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..
मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते..

माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..
क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते..

बहला रहा हूं बस..दिल के जज्बातों को..
मैं जानता हूं..फिर वापस..बीते हुए जमाने नही आते..

  

Saturday 18 June 2016

मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)

 मेरे पापा (हर पिता को समर्पित)

आज फिर ऊँगली पकड़ मुझे एक राह चलना सीखा दो पापा ,
कुछ यादें फिर साथ अपने रहे, कुछ बातें ऐसी बना दो पापा ,

देख युही आँखो में मेरे ,पकड़ मुझे हस् के गले से लगा दो पापा ,
आज फिर मुझे हाथ पकड़ एक राह संघ चला दो पापा,

याद है मुझको आपका कंधे पे बिठा कर हर जगह घुमाना पापा ,
हातों में ले मुझे ,हातों में ही सुलाना पापा,

हर सुबह माथे पे चुम मुझे गोदी में उठाना पापा ,
अपने हातों से ही ज़िन्दगी भर खाना आप खिलाना पापा,

याद है मुझे आपका मेरे आंसू पोछ ,हसाना पापा ,
ख्वाइश मेरी सारी पूरी कर,ख्वाब अपने भुलाना पापा ,

मेरे हर सपने पूरे हो ,उन् सपनों को अपना बनाना पापा,
मेरी एक हस्सी देखकर ,आपका अपना गम भुलाना पापा ,

खुशनसीब में हु जहां कि आप मुझे मिले हो पापा  ,
पर वही मेरे जन्म पर खुश आपको हर-दम पाना पापा ,

घर में मुझे जहां सब प्यार है दिखाते हर वक़्त-हर पल  पापा ,
वही बिन दिखाए न कुछ बताये आपका वो प्यार जताना पापा ,

एक दिन जब आप मुझसे दूर गए ,लगा जैसे कि कही आप भूल गए पापा ,
महसूस किया जब आप बिना ,तो लगा दिल में कही अधूरापन है पापा,

फिर उस धुंद से दौड़ आपका मेरी ओर चले आना पापा,
देख आपको मेरी मुस्कान फिर चहेरे पे लौट आना पापा ,

फिर आपका गले मुझको लगाना पापा ,
और ऊँगली पकड़ मुझे फिर एक राह चलना सीखाना पापा,

आपका फिर मुझमे ज़िन्दगी भर बस जाना पापा ,
आप मुझमे अब हरदम-हरवक्त समाना पापा। 

कवि निशित योगेन्द्र लोढ़ा 
 


 







 
 


Tuesday 14 June 2016

शायराना १

शायराना १

न जाने क्यों दूर हो मुझसे ,
अक्सर राहों में दिख जाते हो,
पास नहीं होते हो मेरे ,
फिर क्यों सपनो में इतना आते हो।

निशित लोढ़ा 

दिल से दिल की बातें

दिल से दिल की बातें 

वक़्त निकालने के लिए कभी साथ ज़रूरी लगता था ,
आज अकेले यादों के सहारे भी जी लेता  है ,

 अब न तुम याद आते हो ,न तुम्हारी याद आती है,
ये बहती हवा दिल के पन्ने पलट कर न जाने कहा चली जाती है ,


मांगू जहां छाया तेरे जुल्फो कि उस तपती दुपहरी में, 
 चहेरा वही मेरा न जाने क्यों यु जला चली जाती है  ,

खुद कि वफ़ा ऐ दिल अब क्या में साबित करू ,
 मेरे दिल की धड़कन मुझे बेवफा कहे जाती है ,

मुलाकात तो आज भी होती है इन् राहों पर,
में नज़रे झुकता, तो वो मुस्कुरा देती है ,

अब लगता है कोई ख्वाइश उनकी बाकि रही होगी ,
वर्ना जब में पलट कर देखता , 
तो वो लबो पे क्यों मुस्कान ले छुपाती है।   

कवि निशित लोढ़ा 
  

Thursday 2 June 2016

न जाने वो कौन थे

न जाने वो कौन थे ,

मोहबत का तवजु दे गए मुझे ,
न जाने वो हमदर्द कौन थे,

लिखी न कभी दास्ताँ दिल की ,
 दिल जला वो दे गए ,
जाने वो खुदगर्ज़ कौन थे,

रास्ता ढूंढता मुसाफिर बन जहां  ,
वो राही बन बेसहारा कर गए,
जाने वो सरफिरे कौन थे ,

में चला जहां जो अपनी चाल कही ,
वे काफिला बन साथ चल गए ,
जाने वो हमदम कौन थे,

अब कही अपनी राह पा चूका,
मिले जो वो जन मौन है ,
सोचु में बस यही , न जाने वो कौन थे। 


कवि निशित लोढ़ा