Tuesday 29 November 2016

दिन वही शाम है

दिन वही शाम है

वो लबों पे जैसे नाम सा,
वो आँखों में पैगाम है,
वो साँसों में धधकती ,
जैसे धुप हुई शाम है,
ये शाम कि ज़ुस्तज़ु,
ये रात का आगाम है,
ये झलकती आँखों के आँसू बस तेरे नाम है ,
बस तेरे नाम है,
मन में जज़्बात है,
कहने को कुछ बात है,
लबो पे नाम है तेरा,
तो कैसी ये सौगात है,
खुशनुमा रहना तुम युही,
ये सपनो की रात है,
कभी याद आऊँ में अगर ,
तो हर रात जैसे कायनात है,
चहेरे पे मुस्कान लेकर ,
चलना एक शाम रे,
हम तुम्हे देख मुस्कुरा दे अगर ,
तो बस वो हमारा दिन है और वही शाम है।
मिले अगर फिर हम कही ,
राहो को सलाम है,
बस हॅसकर गले से लगा लेना,
मेरा तो बस वही दिन है वही शाम है,
होता ना में शायर कभी,
ये दिल का शब्दों को जाम है,
ये कवी नही शायरो में शुमार,
ये तो मेहखाने में आम है,
इसे थी मोहबत की जुस्तजो,
पर दिल कहा इसके नाम है,
जीता बस यादों के सहारे ,
बस हमारा दिन वही, वही हमारी शाम है।
कवि निशित लोढ़ा

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