Thursday 21 September 2017

कर जाता है


कर जाता है -

वक़्त के साथ सब बदल जाता  है ,
जो आता ज़िन्दगी में, घाव हरा कर जाता है ,

लोग कहते है तूम कविता में, लिखते गद्य  हो ,
पर मन लेख में, कविता कर जाता है,

ये दिल भी उनके साथ रो लेता है ,
वो भी रो कंधे पे ,दिल हल्का कर जाता है ,

ये आसमान ,ये बादल ,सूरज से क्या लड़े ,
ये तो कुछ पल छाव कर जाता है ,

लोगो की खस्ता हालत पे ये दिल,
खाली युही चिन्ता कर जाता है ,

बांट रहे युही ,रोज स्वाद बातों के ,
कुछ लफ़्ज़ों से मुँह को, मीठा कर जाता है ,

लोग न जाने क्यों बूढ़े होने से डरते है "निश",
वक़्त हर इंसान को बूढा कर जाता है।

लेख-निशित लोढ़ा

Wednesday 13 September 2017

क्या करोगे

क्या करोगे 

मेरे दिल-ऐ-अरमान ले क्या करोगे,
इस दिल की जान ले क्या करोगे ,

दर्द-ऐ-एहसास की कीमत बहुत है ,
फिर इस जूठी मुस्कान ले क्या करोगे ,

धर्म-ऐ-ईमान ही का तो ज्ञान है ,
खुद भगवान बन क्या करोगे ,

ज़िन्दगी का कुछ भरोसा है नहीं ,
फिर इस सम्मान का क्या करोगे ,

हो रही इंसानियत बेबस जहा ,
मान में अभिमान ले क्या करोगे ,

एक अनजान शक्श ही समझा मुझे ,
अब मेरा एहसान ले क्या करोगे ,

बस एक ग़ज़ल "निशित" की पढ़ लेना ,
फिर देकर इलज़ाम क्या करोगे. 

लेख - निशित लोढ़ा