जाने में कौन था
मंज़िल को ढूंढता, जाने में कौन था ,
मोहबत कर बेहटा ,प्यार में रहेता ,
सपनों में खोता उनके, जाने में कौन था ,
लिखता में रहता ,जो मन मेरा कहता ,
पन्ने पे थी कहानी मेरी , जाने में कौन था ,
जवाबो की तलाश थी,मंज़िल मेरे पास थी ,
बस अकेला राही था में, सोचता यही जाने में कौन था ,
वो पल भी हसीन थे ,जब सब मेरे करीब थे ,
हस्ता मुझमे उस वक़्त न जाने वो कौन था ,
इंतज़ार किया मैंने ,जीना भी सीखा यादों के सहारे ,
न जाने उस चहेरे के पीछे वो चहेरा कौन था।
कवि निशित लोढ़ा