Sunday, 10 April 2016

ज़िन्दगी

      ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी तुझे जीने के लिए ये चुनाव क्यों ,
तरजीह क्यों हर पहल पे ,रास्तों में ये घुमाव क्यों ,

हर तरफ जहां सवाल है ,वहां तेरा भूचाल क्यों ,
ऐ ज़िन्दगी तुझसे आशा है ,तो मन में ये बवाल क्यों ,

क्यों मुश्किल है मेरा फैसला लेना ,जब जीने का जवाब तुम ,
धड़कन धड़कती है दिल कि,पर साँसों में हो जैसे ख्याल तुम,

ज़िन्दगी तुम हस्सी हो मुस्कराहट हो तुम जीने की चाहत हो ,
पर तुम ज़िंदा हो मुझमे जैसे खुदमे अफ़राद हो ,

जीने का नाम है ज़िन्दगी ,मुमकिन हर राह में फिराक है ज़िन्दगी ,
फिर क्यों है मुझमे जैसे कोई अफसाद है ज़िन्दगी ,

आशा की किरण दिखी जहां, वहां मेरी कहानी का जवाब है ज़िन्दगी ,
लिखे तकते मैंने हज़ार ,पर मुस्कराहट है जैसे जहान है ,ऐ ज़िन्दगी। 

कवी निशित लोढ़ा 




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