दिल से दिल की बातें
आज अकेले यादों के सहारे भी जी लेता है ,
अब न तुम याद आते हो ,न तुम्हारी याद आती है,
ये बहती हवा दिल के पन्ने पलट कर न जाने कहा चली जाती है ,
मांगू जहां छाया तेरे जुल्फो कि उस तपती दुपहरी में,
चहेरा वही मेरा न जाने क्यों यु जला चली जाती है ,
खुद कि वफ़ा ऐ दिल अब क्या में साबित करू ,
मेरे दिल की धड़कन मुझे बेवफा कहे जाती है ,
मुलाकात तो आज भी होती है इन् राहों पर,
में नज़रे झुकता, तो वो मुस्कुरा देती है ,
अब लगता है कोई ख्वाइश उनकी बाकि रही होगी ,
वर्ना जब में पलट कर देखता ,
तो वो लबो पे क्यों मुस्कान ले छुपाती है।
कवि निशित लोढ़ा
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