Tuesday, 14 June 2016

दिल से दिल की बातें

दिल से दिल की बातें 

वक़्त निकालने के लिए कभी साथ ज़रूरी लगता था ,
आज अकेले यादों के सहारे भी जी लेता  है ,

 अब न तुम याद आते हो ,न तुम्हारी याद आती है,
ये बहती हवा दिल के पन्ने पलट कर न जाने कहा चली जाती है ,


मांगू जहां छाया तेरे जुल्फो कि उस तपती दुपहरी में, 
 चहेरा वही मेरा न जाने क्यों यु जला चली जाती है  ,

खुद कि वफ़ा ऐ दिल अब क्या में साबित करू ,
 मेरे दिल की धड़कन मुझे बेवफा कहे जाती है ,

मुलाकात तो आज भी होती है इन् राहों पर,
में नज़रे झुकता, तो वो मुस्कुरा देती है ,

अब लगता है कोई ख्वाइश उनकी बाकि रही होगी ,
वर्ना जब में पलट कर देखता , 
तो वो लबो पे क्यों मुस्कान ले छुपाती है।   

कवि निशित लोढ़ा 
  

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