Wednesday 28 August 2019

इश्क़ के मुसाफिर

इश्क़ के मुसाफिर 


खुली किताब के पन्ने जैसा,
एक कहानी लिखता हूं,

वो स्याही है आंसू से भरी,
जिससे, में ,मेरी रवानी कहता हूं,

दर्द है नासमझी का,
इश्क़ बेशक उसे कहता हूं,

काश समझा पाता उन्हें,
की आज भी उनमे कितना रहता हु,

मेरी कहानी के , किरदार है वो,
मेरे सपनों के सौदागर जैसे,

में मुसाफिर हु ,जिनकी यादों का,
उस मंज़िल के किनारे ,अब भी,
उन्हें याद कर लिखता हूं,

बेशक दूर हो गये मुझसे,
में काफ़िर बन ,जो रहता हूं,

अब पहेचान न पाए ,शायद इस "निश" को वो,
पर में अब भी, उनकी याद में रहता हूं।।

निश

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