Wednesday 25 December 2019

कैसे

कैसे 


जल गए जो सपने अपने ,
प्यास उसकी बुझाये कैसे,

दर्द दिल में था जिसका,
मरहम बताओ लगाए कैसे ,

शब्द कम पड़ गए जहा ,
लफ्ज़ो को रिझाये कैसे ,

बीते पल यादे थी,
आज ज़िन्दगी बिताये कैसे ,

में कल जो था ,वो आज नहीं ,
कोई बताये ,की अब खुद को बनाये कैसे।।


निश 

Sunday 24 November 2019

लफ्ज़ो के घूँट

लफ्ज़ो के घूँट 

 
अलफ़ाज़-ऐ-शब्दो से घिरा हुआ,
वो पल ज़िन्दगी के पिरोये जा रहा था,
जिस वक़्त में होश संभाला,बस फिर,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था,

नशा बहुत था उस आलम का,
जिस कहानी को में जीया जा रहा था,
पल पल में मिलते बदलते लोग मुझे,उस वक़्त में,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था,

ज़िन्दगी के अफ़साने बहुत थे यार,
में उन्हें हँसता-रोता ,जीता-हारा,
बस गुनगुनाता चलता चला जा रहा था,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था,

सर्द-गर्मी सिर्फ मौसम की न थी,
दर्द जिस्म के जो लिया जा रहा था,
चहेरे पे फिर भी वो मुस्कान ले,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था,

कहानी सिर्फ मेरी ना थी उस जाम में,
फिर भी ,किरदार अपना निभाये जा रहा था,
अपना वक़्त अदा कर के,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था,

मेहखानो में फिर अपनी चर्चा बहुत हुई,
वो नशा नही ,जो चढ़ पा रहा था,
बस किताब-ऐ-स्याही ले कर वहा,
में लफ़्ज़ों के घूँट पीया जा रहा था।।

©nishhjain

Tuesday 12 November 2019

समझा न सके

समझा न सके 


खड़े थे इंतज़ार में ,
तुम आ न सके,
बेताब दिल को,
हम भी समझा न सके ,

क्यों ऐतबार था तुमसे इतना ,
की रहते थे सवाल बन ,
हम सवालो के जवाब को ,
अकेले, सुलझा न सके ,

ये कैसी कश्मकश में था ,
दिल ये हमारा ,
की दिल को समझा कर भी ,
हम मना न सके ,

लगता है इश्क़ ऐ वफ़ा ,
से पुरानी यारी है तुम्हारी,
तभी हम खुद को ,
इस दर्द में संभाल न सके ,

सुना है ,
बहुत आगे बढ़ गए आप  ,
ज़िन्दगी की दौड़ में ,
हम ये खेल न समझे कभी ,
और इस दिल को समझा न सके ,

अब बढे है, कुछ कदम हमारे,
ज़िन्दगी जीने की और,
पर यादों के सहारे भी ,
कितना चल पाएगे, ये खुद को हम समझा न सके।।

निश 

Friday 27 September 2019

इंतज़ार ऐ इश्क़

इंतज़ार ऐ इश्क़ 



बेमतलब की हमसे, हमारी रज़ा न पूछो ,
हम दर्द अपना अब किसे बतायेगे ,

जो ज़ख्म दिए है ,दिल पे ,
उस पे हम ,अब बताओ मर्ज़ कैसे लगाएंगे,

वो अश्क़ जो बहा नज़रो से,
वो दर्द अपना,सबसे अब कैसे छुपाएगे,

मेहखानो में जो रहते है हम,
अपने घर को अब कैसे जाएगे ,

ये जगह कैसी ली है ,तूने इस दिल में,
अब सांस हम कैसे ले पाएगे ,

दर्द तो अब भी है तेरे जाने का,
एक दफा आ कर , हाल तो पूछ ,
की तेरे बिना, अब भी हम कैसे जी पाएगे।।

निश  

Saturday 14 September 2019

ये खता कैसी

ये खता कैसी

कोई खता हो हमसे तो बताना ,
शिकवा रहे जाये कोई तो भूल जाना  ,
गलती मान भी लेगे हम बिन गलती के ,
बस दस्तक दे दिल पे कभी यु छोड़ न जाना।

निश 

Wednesday 28 August 2019

इश्क़ के मुसाफिर

इश्क़ के मुसाफिर 


खुली किताब के पन्ने जैसा,
एक कहानी लिखता हूं,

वो स्याही है आंसू से भरी,
जिससे, में ,मेरी रवानी कहता हूं,

दर्द है नासमझी का,
इश्क़ बेशक उसे कहता हूं,

काश समझा पाता उन्हें,
की आज भी उनमे कितना रहता हु,

मेरी कहानी के , किरदार है वो,
मेरे सपनों के सौदागर जैसे,

में मुसाफिर हु ,जिनकी यादों का,
उस मंज़िल के किनारे ,अब भी,
उन्हें याद कर लिखता हूं,

बेशक दूर हो गये मुझसे,
में काफ़िर बन ,जो रहता हूं,

अब पहेचान न पाए ,शायद इस "निश" को वो,
पर में अब भी, उनकी याद में रहता हूं।।

निश

Thursday 15 August 2019

मत पूछो

मत पूछो


अब ज़िकर न करेंगे हम उनका ,
आप हमसे हमारी कैफियत न पूछो ,

इन्तेहां जो ली उन्होंने ,
उस इश्क़ का मज़हब न पूछो ,

दर्द -ऐ- दिलो का, जो हुआ कभी  ,
उस दर्द का ,हमसे यु मर्ज़ न पूछो ,

उनके किरदार, जो है ज़िन्दगी में ,
अब उस कला का,हमसे क़र्ज़ न पूछो ,

मतलब की, इस दुनिया में ,
हमसे हमरा, फ़र्ज़ न पूछो ,

लिख देता हु जो चंद लफ्ज़ दिल के ,
उस मन से उसका मल न पूछो

होती है कहानी सबकी ,
हर लफ्ज़ का मतलब न पूछो ,

ये अलफ़ाज़ ,निकले जो "निश" के,
उन शब्दों ,में छुपा, बस कभी दर्द न पूछो।


निश 

Saturday 3 August 2019

वो क्या बात होगयी

वो क्या बात होगयी


एक अरसा हुआ मिले हुए,
ना जाने कहा वो खो गयी ,
जिसकी मुझे तलाश थी ,
वो आँखों से ओझल होगयी ,
न जाने ,वो क्या बात हो गयी ,

किस्मत में नहीं है मिलना ,
फिर भी क्यों उनसे मोहबत होगयी ,
हमने तो उनसे जो इश्क़ किया,
फिर दूरिया क्यों , एक दूसरे से होगयी ,
न जाने ,वो क्या बात होगयी ,

में इंतज़ार में बेठा था,
वो इंकार में मेरी हो गयी ,
अब न में उनका मर्ज़ रहा ,
फिर वो कैसे मेरा दर्द होगयी ,
न जाने क्या बात होगयी,

अक्सर ढूंढ़ता था उन्हें जहा हर गली ,
हर दिशा में मेरे जैसे एक तस्वीर होगयी ,
धुंदला चूका था जहा उनकी नज़रो में ,
मेरी हर याद उन्ही से होगयी ,
जाने वो क्या बात होगयी ,

शायद जा चुके है वो दूर हमसे ,
पर ये दिल की आदतें मज़बूर होगयी ,
अब न होगी कभी इश्क़ की तलब ,
न जाने क्यों ऐसी बात होगयी,

नहीं जानता क्या सुनते भी होंगे वो ये लफ्ज़ मेरे,
जो दर्द में अर्ज़ मुझसे हो गयी ,
देख न यार अब भी कितना याद है मुझे वो ,
नहीं जानता क्या वो बात होगयी ,

चलो खत्म कर देता हु चंद ये लफ्ज़ मेरे ,
अब आरज़ू कुछ कहने की पूरी हो गयी ,
सिर्फ ये शब्द ही पूरे हुए है मेरे ,
पर ये मोहबत ,ये इश्क़ ,ये प्यार ,
वो तो बस ,मुझे अधूरी हो गयी ,
न जाने क्या बात होगयी।


निश












Saturday 13 July 2019

ये मन की बातें

ये मन की बातें 


आज़माइश है इस दिल की,
बताओ नुमाइश अब क्या करे,
ज़िन्दगी का तो आगाज़ है,
अब ख्वाइश हम क्या करे,

चंद पल की ही तो है ज़िन्दगी,
क्यों न हर पल में कुछ खास करे,
कोई नाराज़ न रहे जाए हमसे,
चलो कुछ ऐसी ही बात करे,

बहुत छोटी है ये ज़िन्दगी,
चलो कुछ गलतियां माफ करे,
माफी मिले न मिले,
हम तो अपना काम करे,

नफरत बहुत भरी है इस दुनिया मे,
गुज़ारिश है,आगाज़ करे,
चंद लफ्ज़ मुह से मीठे बोल कर ,
चलो कुछ गलतियां तो माफ करे,

जीने को वैसे तो कही साल है,
पर वक़्त कैसे कटता चला जाये ,
कोई ऐसा भी एहसास करे,
नज़र में हमारे छोटी सी है ज़िन्दगी,
चलो मन ही थोड़ा साफ करे,

अल्फ़ाज़-ऐ-लफ्ज़ ही तो सहारे है,
दिल ऐ ख्वाइश कुछ हो तो बात करे,
मन मे कोई वहेम न रख लेना ऐ दोस्त,
चल इस दफा कोई बात करे।।

निश

Sunday 16 June 2019

में हु परछाई

में हु परछाई

एक कदम दूर हु ,
फिर भी हु में पास तेरे ,
जुड़ा हु तुझसे ,जैसे हु कोई परछाई ,

देख तेरे साथ हु,देख तेरे पास कही,
तू जब भी महसूस करे,में तेरे पास वही,
जुड़ा हु उस वक़्त में तुझसे  ,जैसे हु कोई परछाई ,

में अंधेरो में हु खोया ,
में उजालो में हु पास वही  ,
क्यूंकि जुड़ा हु में तुझसे ,जैसे हु कोई परछाई ,

अकेला न समझना खुदको,
अकेलेपन में ,में तेरे पास वही ,
जब भी ढूंढे मुझको ,में हु वहा, जैसे हु कोई परछाई।


" निश "







पिता की परछाई

पिता की परछाई 

वो हाथ जो पकड़ा आपने मेरे जन्म पर,
कभी न छोड़ा फिर कभी,
आप वो परछाई हो पापा,

में अकेला हु जहा,
पीछे साथ कभी न छोड़ा आपने,
आप वो परछाई हो पापा,

उजालो में साथ चलते थे,
अंधेरो में उजाले कर गए मेरे ,
जीवन के उन कदमो में,
आप वो परछाई हो पापा,

में आपका बिम्ब अब भी देखता हूं खुदमे,
लोग कहते है ,में आप पे गया हूं,
पर में कभी आप सा न बन पाउगा,
में आपकी वो परछाई हु पापा,

कभी कभी बहुत याद आते हो,
देखो वादा था आपका ,
जो साथ कभी न छोड़ोगे,
बस आप वो परछाई हो पापा,

में आपका निश, आप मेरे योगी,
बस चंद शब्दो मे खत्म करता हु,
कहे कि में भी आपकी परछाई हु पापा।।

निश

Thursday 6 June 2019

में तेरा मेहमान हु

में तेरा मेहमान हु











मुसाफिर हु साहेब ,तेरी गली से अनजान हु ,
जो मिले रास्ते अगर ,में तेरा मेहमान हु,

ख्वाइशो का पता नहीं,मंज़िलो से अनजान हु ,
में तो भटकता राही ,में तेरे रास्तों का मेहमान हु,

वो चुब्ते काटे -व-पत्थर मिलते है हर गली,
हर रास्तो पे चहेरे जो हज़ार हो,
कोई बता दे पहचान अपनी,
वरना हर नज़र में बेईमान हो,
उस वक़्त में बस,में तो एक मेहमान हु,

रास्तो का राही ,लाखो चहेरो में जैसे सवार हु ,
मंज़िल को खोजता वो मुसाफिर ,शायद वो भी भटकता इंसान हो ,

तुम सुलझे लगते हो,हम खोये लगते है,
मंज़िल-ऐ-रास्ते से वाकिफ हो तुम,वहा में उस सफर से अनजान हु ,
तो शायद में तेरा मेहमान हु,

तपती धुप ,में नंगे कदम हम कुछ दूर चलते है,
प्यासे है मगर , पसीने से लहू-लुहान हु ,
मेरी खोज खत्म  न होगी कभी ,में वो इंसान हु ,
मिल जाऊ अब जब कभी ,बुला लेना कहे 'निश ' ,
शायद फिर अनजान ही सही ,में तेरा मेहमान हु।

निश 

Sunday 2 June 2019

सिगरेट जैसी हो

 सिगरेट जैसी हो 

एक नशा हो तुम मेरा ,
जो छूटता नहीं ,शायद आदत हो ,
 जलती सिगरेट जैसी ,

हाथ में हो मेरे,
चूमता हु तुम्हे होटों से ,
एक कस हो तुम ,
ज़हन में जो रहती हो,
तुम बिलकुल सिगरेट जैसी हो,

धड़कने रुक जाती है ,
साँसे भी थम जाती है ,
ज़्यादा फरक नहीं है तुम दोनों में ,
दोनों जब भी छूटोगे ,जान ही जानी है ,
तुम ना सिगरेट जैसी हो ,

छूट पाना मुश्किल ही है ,तुम दोनों का ,
याद भी है ,और आदत भी ,
धुए जैसा ही है ये इश्क़ ,
दोनों नशे जो हो ,
सोचता हु जब कभी ,
लगता है तुम सिगरेट जैसी हो। 

निश 

Saturday 25 May 2019

खुशनसीब हो

खुशनसीब हो

हर सुबह अगर ,तुम्हारे सर पे एक हाथ है,
जो तुम्हे सहेला के उठाता है ,उस उगते सूरज कि किरणों के संग, 
तो मानना कि खुशनसीब हो,

दो वक़्त की रोटी, बिन मांगे थाली में मिल जाती है,आखरी टुकड़ा कहे के तुम्हे, खिला देती है,तुम्हारे इतने ना कहेने के बाद भी,
तो समझना खुशनसीब हो,

इतनी गर्दिशे होती है उनसे,शिकायतें भी बहुत है, पर फिर भी हर ख्वाइश पूरी होजाती है, तो शायद खुशनसीब हो,

आँचल में छुपा के रखती है सबसे,कही नज़र न लग जाये तुमको,ऐसा प्यार अगर मिलता है,तो समझना खुशनसीब हो,

वो डाँटते बहुत है,और नाराज़ होते है हम युही,
न जाने कोनसा स्वार्थ है उनका इसमे,
पर सच कहु तो शायद तुम खुशनसीब हो,

नही मिलता लोगो को ,ऐसा प्यार ज़िन्दगी में,तुम्हें कुछ भी मिल जाये इन् चंद शब्दो मे, 
तो खुदा कसम समझना कि खुशनसीब हो।

"निश"

याद बहुत आते हो

याद बहुत आते हो,


जबसे गए हो आप यू छोड़के,
अनजान रास्तो पे, तब से,न जाने क्यों, आप याद बहुत आते हो,

ज़्यादा समझा तो नही हु दुनियादारी में,
कोशिश करता हु सीखने की,
आपके सीखाई बातों के सहारे,
उस वक़्त आप याद बहुत आते हो,

ठोकरे खा लेता हूं , दर्द भी होता है मुझे,
वो लड़-खड़ाते वक़्त ,जब आप मुझे पकड़ लेते थे उस वक़्त,
उस पल में आप याद बहुत आते हो,

चहेरे तो देखे कहा थे,आप जो थे हाथ थामने को,
 अब चहेरे ले घूमता हु,इन लाखो अनजान चहेरों के बीच,पहचानूँ कैसे,
 उस वक़्त में मुझे आप याद बहुत आते हो,

अकेला हो गया हु बहुत,आपके जाने के बाद,जानता हूं,
देखते होंगे आप भी मुझे,बस ऐसे ही साथ रहना,
 क्योंकि हर पल में आप मुझे याद बहुत आते हो।

"निश"

में अब भी तुम्हे याद हु

में अब भी तुम्हे याद हु


जहा भुला चुके तुम हर बात हमारी ,
उन वादों में कही,क्या में अब भी याद हु ,

जहा टूटा हुआ हु,दिल से में ,
उस दर्द में क्या,में अब भी याद हु ,

बेशक भुला दिया तुमने ,फिर ये याद कैसी,
जिस याद में ज़िक्र किसी और का ,उस याद में क्या में अब भी याद हु,

वो पल बीत गए,वो यादें भी सिमट गयी ,
हर बात वादों की ,कोई बात ऐसी हो ,
कि कही ,
ज़िकर हो जाये कि,में अब भी याद हु ,

लो फिर चले गए अब तुम,
अब इंतज़ार में है फिर हम ,
बता दो न हमे ,कि "निश "नाम से ,क्या में अब भी याद हु।   

" निश "

Thursday 23 May 2019

फिर एक बार रोक लो ना

फिर एक बार रोक लो ना,
चलते कदम थम जाते है,
जब वो मुस्कुराते है,
बेवजह शरमाने वाले ,
फिर हमें रोक लो ना,

वो ख्वाबो में जो आते है,
वो मंद-मंद मुस्कुराते है,
वो पायल की झंकार से,
बेवजह ही सही,अब हमें रोक लो ना,

वो चलते हुए चले जाना,
वो तेरे पीछे मेरा आना,
वो कदमो का थम जाना,
अरे कोई उन्हें रोक लो ना,

वो लबो पे तेरे नाम आना,
वो लफ़्ज़ों में गुनगुनाना,
तुझे देख बस सहेम जाना,
तेरे जाने पर फिर तेरे पीछे आना,
कोई तो हमे रोक लो ना,

शहर से दूर होगये, 
हम मजबूर होगये,
वो जा चुके है जो अब,
मन कहता है,
फिर एक दफा रोक लो ना।

निश

Wednesday 22 May 2019

एक अरसा हुआ

एक अरसा हुआ 

ख्वाबो में खोये ,दिल के ताबूत में,
एक तस्वीर है छुपी हुई ,एक अरसा हुआ,

शायद वो भुला चुके ,आंसू गम के सूखा चुके,
वो बात मन की ,अब याद कहा ,उस बात को अब एक अरसा हुआ,

हमे तो पल पल याद है,उनकी कही हर बात वो ,
वो तो वादें भुला बैठे ,हम भुला न सके ,इस बात को एक अरसा हुआ ,

लो एक साल और बीत गया ,हम अब भी है वहा खड़े ,
किनारो पे बैठे है ,उफ़ ,लगता है शायद फिर एक अरसा हुआ


निश  

Tuesday 21 May 2019

कुछ यादें है


कुछ यादें है 

चंद शब्दो से ज़िक्र कर लेते है,
हम बिन कोई लफ्ज़ के उनकी फ़िक्र कर लेते है,

वो भूल जाते है बातें हमारी,
हम उनकी कही हर बात बेफिक्र सून लेते है,

नुमाइश बहुत है जनाब उनकी,
हम उनकी हर ख्वाइश को बेपरवाह इस दिल मे बुन लेते है,

नज़र में शायद बुरे है अब हम उनके,
पर हमारी मोहबत में नाम अब भी उनका चुन लेते है।

निश 

Monday 20 May 2019

लिख देता हु

लिख देता हु 



तुमसे हुई ये जो मुलाकात ,
कलम कि सियाही के सहारे लिख देता हु ,

ये हुई जो हमारी बात ,
उसे पन्ने के एक तरफ़ा लिख देता हु,

मान  लिया मोहबत तो नहीं है हमसे ,
इश्क़ तो है ,चलो जज़्बात लिख देता हु,

तुम खोये में खोया ,दूर हो ,
चलो ये इंतज़ार लिख देता हु ,

कश्मकश है बड़ी ,तुमसे मिलने की चाह की ,
ऐतबार ही सही ,इंकार तेरा लिख देता हु ,

एक आशिक़ हु ,मेरी आशिकी समझना,
में दर्द ऐ एहसास,फिर एक बार लिख देता हु ,

कोई पल छूट न जाये इस दफा ,
में फिर एक तरफ़ा प्यार अपना लिख देता हु।


निश 

Sunday 19 May 2019

कीमत

कीमत

किस बात कि कीमत लगाते हो,
एक आशिक को क्यों आज़माते हो,

फितूर देखा कभी उसकी मोहबत का,
वो तड़प ,उस दर्द में रुलाते हो,

न आंसू देखे चहेरे पे,न देखे दुख दर्द कही,
एक याद है जो सपनो जैसी,वो याद क्यों दे जाते हो,

कहे दो की नही इश्क़ हमसे,
न हुआ कभी प्यार है, क्यों आंसू छलकते देखा हमने,
क्यों दर्द ऐसा दे जाते हो,

माना कि नही शायर है हम,
पर कोई कहानी ही लिख देते है,
एक बात याद आती है, कि हर रात तुम सपने में आते हो।

निश

Thursday 16 May 2019

मन करता है

मन करता है 

कुछ नग्मे लिखने का मन करता है ,
तेरे संग इस बारिश में, अब भीगने का मन करता है,

हवाओ का रुख तो मुझे मालूम नहीं ,
पर तेरी इन उड़ती ज़ुल्फो में,फिर खोने का दिल करता है,

ये बादल भी अब बिजली खडका उठे ,
शायद तेरी तस्वीर लेने का उसका भी मन करता है ,

अब थाम लिया है ,मेने हाथ जो तेरा ,
अब तुझसे दूर न होने का कोई मन करता है ,

इस दिल की ख्वाइश में बस तू है ,
तो इस दिल को अब कहा रोने का मन करता है ,

चल भीग लेते है इस मौसम में ,
अब जीने को फिर ,थोड़ा मन करता है।

निष्

Thursday 9 May 2019

नहीं आता

नहीं आता 


मोहबत को पेसो से तोलना नहीं आता ,
इश्क़ को लफ्ज़ो से बोलना नहीं आता ,
लिख देता हु अक्सर शायरी में ,
पर अब प्यार में दिल खोलना नहीं आता।  

Saturday 4 May 2019

तेरा ज़िकर कर रहा हु

तेरा ज़िकर कर रहा हु 

अरसे बाद आज कुछ लिख रहा हु,
इसी बहाने चल तेरा ज़िकर कर रहा हु ,

अलफ़ाज़ तो नहीं है  कुछ  कहने और सुनाने को,
पर एक याद है ,चल में लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,

जहा खोया हु में तेरी यादों में ,
तो खोयी है बस अपने सपनो में ,
न तोड़ूगा तेरी ये नींद ,क्यूंकि तू भी है मेरे अपनों में ,
इजाज़त है तुझे जाने कि  ,
कोई बंधन न होगा तुझे ,रोकने को ,
पर एक याद है जो लिख रहा हु ,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,

अनजान होगी मेरी  मोहबत से ,
मेरी इश्क़ ऐ वफ़ा  का ज़िकर कर रहा हु,
तुझे बेवफा लगूंगा मगर,
में तो आज भी तेरी याद में लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,

भूल चुकी होगी  मुझे,
क्या मालूम में कभी भूल न पाया तुझे,
शायद ये अलफ़ाज़ से वाकिफ न होगी तू ,
पर बस  तेरी याद में ये जो लिख रहा हु ,
इसमें तेरा ही ज़िकर कर रहा हु ,

ये रात का आलम ,ये याद दिलाता है तेरी,
काश वाकिफ होती तू मेरी इस मोहबत से,
एक इलज़ाम के साथ ही लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु। ... 

निश