Thursday 6 June 2019

में तेरा मेहमान हु

में तेरा मेहमान हु











मुसाफिर हु साहेब ,तेरी गली से अनजान हु ,
जो मिले रास्ते अगर ,में तेरा मेहमान हु,

ख्वाइशो का पता नहीं,मंज़िलो से अनजान हु ,
में तो भटकता राही ,में तेरे रास्तों का मेहमान हु,

वो चुब्ते काटे -व-पत्थर मिलते है हर गली,
हर रास्तो पे चहेरे जो हज़ार हो,
कोई बता दे पहचान अपनी,
वरना हर नज़र में बेईमान हो,
उस वक़्त में बस,में तो एक मेहमान हु,

रास्तो का राही ,लाखो चहेरो में जैसे सवार हु ,
मंज़िल को खोजता वो मुसाफिर ,शायद वो भी भटकता इंसान हो ,

तुम सुलझे लगते हो,हम खोये लगते है,
मंज़िल-ऐ-रास्ते से वाकिफ हो तुम,वहा में उस सफर से अनजान हु ,
तो शायद में तेरा मेहमान हु,

तपती धुप ,में नंगे कदम हम कुछ दूर चलते है,
प्यासे है मगर , पसीने से लहू-लुहान हु ,
मेरी खोज खत्म  न होगी कभी ,में वो इंसान हु ,
मिल जाऊ अब जब कभी ,बुला लेना कहे 'निश ' ,
शायद फिर अनजान ही सही ,में तेरा मेहमान हु।

निश 

5 comments: