सिगरेट जैसी हो
एक नशा हो तुम मेरा ,
जो छूटता नहीं ,शायद आदत हो ,
जलती सिगरेट जैसी ,
हाथ में हो मेरे,
चूमता हु तुम्हे होटों से ,
एक कस हो तुम ,
ज़हन में जो रहती हो,
तुम बिलकुल सिगरेट जैसी हो,
धड़कने रुक जाती है ,
साँसे भी थम जाती है ,
ज़्यादा फरक नहीं है तुम दोनों में ,
दोनों जब भी छूटोगे ,जान ही जानी है ,
तुम ना सिगरेट जैसी हो ,
छूट पाना मुश्किल ही है ,तुम दोनों का ,
याद भी है ,और आदत भी ,
धुए जैसा ही है ये इश्क़ ,
दोनों नशे जो हो ,
सोचता हु जब कभी ,
लगता है तुम सिगरेट जैसी हो।
निश
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