Sunday 16 June 2019

में हु परछाई

में हु परछाई

एक कदम दूर हु ,
फिर भी हु में पास तेरे ,
जुड़ा हु तुझसे ,जैसे हु कोई परछाई ,

देख तेरे साथ हु,देख तेरे पास कही,
तू जब भी महसूस करे,में तेरे पास वही,
जुड़ा हु उस वक़्त में तुझसे  ,जैसे हु कोई परछाई ,

में अंधेरो में हु खोया ,
में उजालो में हु पास वही  ,
क्यूंकि जुड़ा हु में तुझसे ,जैसे हु कोई परछाई ,

अकेला न समझना खुदको,
अकेलेपन में ,में तेरे पास वही ,
जब भी ढूंढे मुझको ,में हु वहा, जैसे हु कोई परछाई।


" निश "







पिता की परछाई

पिता की परछाई 

वो हाथ जो पकड़ा आपने मेरे जन्म पर,
कभी न छोड़ा फिर कभी,
आप वो परछाई हो पापा,

में अकेला हु जहा,
पीछे साथ कभी न छोड़ा आपने,
आप वो परछाई हो पापा,

उजालो में साथ चलते थे,
अंधेरो में उजाले कर गए मेरे ,
जीवन के उन कदमो में,
आप वो परछाई हो पापा,

में आपका बिम्ब अब भी देखता हूं खुदमे,
लोग कहते है ,में आप पे गया हूं,
पर में कभी आप सा न बन पाउगा,
में आपकी वो परछाई हु पापा,

कभी कभी बहुत याद आते हो,
देखो वादा था आपका ,
जो साथ कभी न छोड़ोगे,
बस आप वो परछाई हो पापा,

में आपका निश, आप मेरे योगी,
बस चंद शब्दो मे खत्म करता हु,
कहे कि में भी आपकी परछाई हु पापा।।

निश

Thursday 6 June 2019

में तेरा मेहमान हु

में तेरा मेहमान हु











मुसाफिर हु साहेब ,तेरी गली से अनजान हु ,
जो मिले रास्ते अगर ,में तेरा मेहमान हु,

ख्वाइशो का पता नहीं,मंज़िलो से अनजान हु ,
में तो भटकता राही ,में तेरे रास्तों का मेहमान हु,

वो चुब्ते काटे -व-पत्थर मिलते है हर गली,
हर रास्तो पे चहेरे जो हज़ार हो,
कोई बता दे पहचान अपनी,
वरना हर नज़र में बेईमान हो,
उस वक़्त में बस,में तो एक मेहमान हु,

रास्तो का राही ,लाखो चहेरो में जैसे सवार हु ,
मंज़िल को खोजता वो मुसाफिर ,शायद वो भी भटकता इंसान हो ,

तुम सुलझे लगते हो,हम खोये लगते है,
मंज़िल-ऐ-रास्ते से वाकिफ हो तुम,वहा में उस सफर से अनजान हु ,
तो शायद में तेरा मेहमान हु,

तपती धुप ,में नंगे कदम हम कुछ दूर चलते है,
प्यासे है मगर , पसीने से लहू-लुहान हु ,
मेरी खोज खत्म  न होगी कभी ,में वो इंसान हु ,
मिल जाऊ अब जब कभी ,बुला लेना कहे 'निश ' ,
शायद फिर अनजान ही सही ,में तेरा मेहमान हु।

निश 

Sunday 2 June 2019

सिगरेट जैसी हो

 सिगरेट जैसी हो 

एक नशा हो तुम मेरा ,
जो छूटता नहीं ,शायद आदत हो ,
 जलती सिगरेट जैसी ,

हाथ में हो मेरे,
चूमता हु तुम्हे होटों से ,
एक कस हो तुम ,
ज़हन में जो रहती हो,
तुम बिलकुल सिगरेट जैसी हो,

धड़कने रुक जाती है ,
साँसे भी थम जाती है ,
ज़्यादा फरक नहीं है तुम दोनों में ,
दोनों जब भी छूटोगे ,जान ही जानी है ,
तुम ना सिगरेट जैसी हो ,

छूट पाना मुश्किल ही है ,तुम दोनों का ,
याद भी है ,और आदत भी ,
धुए जैसा ही है ये इश्क़ ,
दोनों नशे जो हो ,
सोचता हु जब कभी ,
लगता है तुम सिगरेट जैसी हो। 

निश