खड़े थे इंतज़ार में ,
तुम आ न सके,
बेताब दिल को,
हम भी समझा न सके ,
क्यों ऐतबार था तुमसे इतना ,
की रहते थे सवाल बन ,
हम सवालो के जवाब को ,
अकेले, सुलझा न सके ,
ये कैसी कश्मकश में था ,
दिल ये हमारा ,
की दिल को समझा कर भी ,
हम मना न सके ,
लगता है इश्क़ ऐ वफ़ा ,
से पुरानी यारी है तुम्हारी,
तभी हम खुद को ,
इस दर्द में संभाल न सके ,
सुना है ,
बहुत आगे बढ़ गए आप ,
ज़िन्दगी की दौड़ में ,
हम ये खेल न समझे कभी ,
और इस दिल को समझा न सके ,
अब बढे है, कुछ कदम हमारे,
ज़िन्दगी जीने की और,
पर यादों के सहारे भी ,
कितना चल पाएगे, ये खुद को हम समझा न सके।।
निश
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