Tuesday 12 November 2019

समझा न सके

समझा न सके 


खड़े थे इंतज़ार में ,
तुम आ न सके,
बेताब दिल को,
हम भी समझा न सके ,

क्यों ऐतबार था तुमसे इतना ,
की रहते थे सवाल बन ,
हम सवालो के जवाब को ,
अकेले, सुलझा न सके ,

ये कैसी कश्मकश में था ,
दिल ये हमारा ,
की दिल को समझा कर भी ,
हम मना न सके ,

लगता है इश्क़ ऐ वफ़ा ,
से पुरानी यारी है तुम्हारी,
तभी हम खुद को ,
इस दर्द में संभाल न सके ,

सुना है ,
बहुत आगे बढ़ गए आप  ,
ज़िन्दगी की दौड़ में ,
हम ये खेल न समझे कभी ,
और इस दिल को समझा न सके ,

अब बढे है, कुछ कदम हमारे,
ज़िन्दगी जीने की और,
पर यादों के सहारे भी ,
कितना चल पाएगे, ये खुद को हम समझा न सके।।

निश 

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