तेरा ज़िकर कर रहा हु
इसी बहाने चल तेरा ज़िकर कर रहा हु ,
अलफ़ाज़ तो नहीं है कुछ कहने और सुनाने को,
पर एक याद है ,चल में लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,
जहा खोया हु में तेरी यादों में ,
तो खोयी है बस अपने सपनो में ,
न तोड़ूगा तेरी ये नींद ,क्यूंकि तू भी है मेरे अपनों में ,
इजाज़त है तुझे जाने कि ,
कोई बंधन न होगा तुझे ,रोकने को ,
पर एक याद है जो लिख रहा हु ,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,
अनजान होगी मेरी मोहबत से ,
मेरी इश्क़ ऐ वफ़ा का ज़िकर कर रहा हु,
तुझे बेवफा लगूंगा मगर,
में तो आज भी तेरी याद में लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु ,
भूल चुकी होगी मुझे,
क्या मालूम में कभी भूल न पाया तुझे,
शायद ये अलफ़ाज़ से वाकिफ न होगी तू ,
पर बस तेरी याद में ये जो लिख रहा हु ,
इसमें तेरा ही ज़िकर कर रहा हु ,
ये रात का आलम ,ये याद दिलाता है तेरी,
काश वाकिफ होती तू मेरी इस मोहबत से,
एक इलज़ाम के साथ ही लिख रहा हु,
इसी बहाने तेरा ज़िकर कर रहा हु। ...
निश
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