क्या करोगे
मेरे दिल-ऐ-अरमान ले क्या करोगे,
इस दिल की जान ले क्या करोगे ,
दर्द-ऐ-एहसास की कीमत बहुत है ,
फिर इस जूठी मुस्कान ले क्या करोगे ,
धर्म-ऐ-ईमान ही का तो ज्ञान है ,
खुद भगवान बन क्या करोगे ,
ज़िन्दगी का कुछ भरोसा है नहीं ,
फिर इस सम्मान का क्या करोगे ,
हो रही इंसानियत बेबस जहा ,
मान में अभिमान ले क्या करोगे ,
एक अनजान शक्श ही समझा मुझे ,
अब मेरा एहसान ले क्या करोगे ,
बस एक ग़ज़ल "निशित" की पढ़ लेना ,
फिर देकर इलज़ाम क्या करोगे.
लेख - निशित लोढ़ा
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