ऐ साथी
लम्बी ये डगर है,
चल कुछ कदम साथ चल लेते है कही ,
ज़िंदगी में मुश्किलें है ,
मुस्कराहट भी है हर घड़ी ,
फिर क्यों न बैठ साथ थोड़ा हस् ले कभी,
चाहत है कही,
मोहबत भी है उनसे ,
चल आशिक़ी कर लेते है अगर वक़्त मिले युही ,
फिर साथ ज़िन्दगी का है ,
साँसे और धड़कन है ,
मिले खुलके तो चल जी लेते है फिर अभी .
चल जी लेते है युही।
निशित लोढ़ा
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